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21 जून का भौगोलिक महत्व, परीक्षोपयोगी तथ्य।

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21 जून अर्थात उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्म अयनांत का दिन। अयनांत का अर्थ होता है - "ठहरा हुआ सूर्य।" उत्तरी गोलार्द्ध में यह दिन वर्ष में एक बार आता है जब 21 जून को सूर्य की किरणें कर्क रेखा (23.5°N)  पर लंबवत होती है। 21 जून को उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे बड़ा दिन व सबसे छोटी रात होती है। 21 जून को कर्क रेखा से जैसे-जैसे उत्तर बढ़ेंगे दिन की अवधि बढ़ती जाएगी ध्रुवों पर यह अवधि 24 घण्टे की होगी। ठीक ऐसी स्थिति दक्षिणी गोलार्द्ध में 22 दिसम्बर को होती है जब सूर्य मकर रेखा पर लंबवत चमकता है। कर्क रेखा भारत के 8 राज्यों गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड,पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और मिजोरम से होकर गुजरती है। इस लिये 21 जून को सूर्य की लंबवत स्थिति के कारण इन राज्यों में तेज धूप देखने को मिलता है। 21 जून को  प्रयागराज में दिन की अवधि 13 घण्टे 44 मिनट और रात की अवधि 10 घण्टे 15 मिनट की होगी। गोरखपुर में दिन की अवधि 13 घण्टे 52 मिनट तथा रात की अवधि 10 घण्टे 7 मिनट की होगी। पडरौना में दिन की अवधि 13 घण्टे 54 मिनट तथा रात की अवधि 10 घण्टे 5 मिनट

पक्के मकानों में आग लगने के भौगोलिक कारण और उससे बचाव।

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बढ़ती गर्मी में आग लगने की घटनाएं हमेशा देखी जाती है पहले ये घटनाएं अधिकतर झुग्गियों और झोपड़ियों में देखने को मिलती थी लेकिन अब इसके साथ-साथ बहुमंजिला मकानों,फ्लैट आदि में भी देखने को मिल रही है। आप सोच रहे होंगे कि कॉन्क्रीट और सीमेंट से बने मकानों में आग कैसे लग जाती है? तो आइए जानते हैं- आजकल बहुमंजिली मकानों के निर्माण में ऐसी वस्तुओं का इस्तेमाल खूब होने लगा है जो ज्वलन के तौर पर संवेदनशील होती हैं। जैसे- वर्तमान समय में दीवारों पर प्लास्टिक पेंटिग कराने क्रेज बढ़ने लगा है लोग तरह-तरह की डिजाइनें दीवारों पर बनवाते हैं जिसमे प्लास्टिक पेंट का प्रयोग किया जाता है।  दीवारों को बार-बार पेंटिंग करने से बचने के लिए लोग एक बार प्लास्टिक पेंटिंग करा देते है ऐसा वे इसलिये करते है कि नमी से दीवारों के पेंट को नुकसान न पहुँचे जब गर्मी बढ़ती है और पारा बेतहाशा चढ़ने लगता है तो ऐसा माना जाता है कि यही प्लास्टिक पेंट ज्वलनशील केमिकल की भांति कार्य करने लगता है और शार्ट सर्किट होने पर मकानों में आग लग जाती है। मकानों में आग लगने का एक कारण यह भी है कि प्रायः गर्मी के मौसम में लोग विधुत

महत्वपूर्ण पर्यावरण सम्मेलन परीक्षोपयोगी तथ्य।

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महत्वपूर्ण पर्यावरण सम्मेलन UNCCD (मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन):- वर्ष 1994 उद्देश्य: राष्ट्रीय कार्रवाई कार्यक्रमों के माध्यम से मरुस्थलीकरण का मुकाबला करना और सूखे के प्रभावों को कम करना (गिराना या घटाना)। भारत ने पहली बार (UNCCD) के पार्टियों के सम्मेलन (COP-14) के 14वें सत्र की मेजबानी की सम्मेलन का विषय था "भूमि को पुनर्स्थापित करें,भविष्य को बनाए रखें"। बॉन कन्वेंशन:- सदस्य 129 उद्देश्य: प्रवासी प्रजातियों को उनकी प्रवासी प्रजातियों के भीतर संरक्षित करना। रामसर कन्वेंशन:- वर्ष 1975 उद्देश्य: आर्द्रभूमि का संरक्षण और सतत उपयोग महत्वपूर्ण बिंदु यह किसी विशेष पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए पहली और एकमात्र वैश्विक संधि है। वियना कन्वेंशन:- ओजोन परत के संरक्षण के लिए  वर्ष 1985 उद्देश्य: क्लोरोफ्लोरोकार्बन के उत्पादन में अंतर्राष्ट्रीय कटौती के लिए रूपरेखा प्रदान करना। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल:- वर्ष 1987 उद्देश्य: ओजोन क्षरण के लिए जिम्मेदार कई पदार्थों के उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करके ओजोन परत की रक्ष