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समुद्र से जुड़े परीक्षोपयोगी महत्वपूर्ण जानकारी।

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समुद्र विज्ञान के अंतर्गत उच्चस्तरीय परीक्षाओं जैसे नेट, जेआरएफ, संघ लोकसेवा आयोग, राज्य लोकसेवा आयोग, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड की टीजीटी, पीजीटी आदि परीक्षाओं में अधिकांश प्रश्न पूछे जाते हैं। इस आधार पर इन परीक्षाओं में पूछे जाने वाले प्रश्नो को ध्यान में रखकर हमने महत्वपूर्ण तथ्यों को तैयार किया है जिसे आप आसानी से समझ सकते हैं। तो आइए जानते हैं:- महत्वपूर्ण तथ्य प्रसिद्ध विद्वान कार्ल जोपरीज ने कहा है कि हवाएँ सागरीय जल को तली तक आलोड़ित करती है, अर्थात् हवाओं से उत्तपन्न धाराओं में सतह से लेकर तली तक जल सामूहिक रूप से आगे बढते है। जबकि प्रयोगों के आधार पर फिण्डले ने कहा कि सागरीय जल को हवाएँ 30 - 60 फीट की गहराई तक ही आलोडित कर पाती हैं।  गहराई के बढते जाने से जल का घनत्व भी बढ जाता है, परिणामस्वरूप वायु भारी जल को गतिशील नहीं कर पाती है। पृथ्वी के परिभ्रमण के कारण सागरीय जल उ० गोलार्द्ध में दाहिने तथा द० गो० में बायीं ओर मुड़ जाती है।  इस तथ्य की खोज सर्वप्रथम नानसेन ने किया, जिसे बाद में एकमेन ने गणितीय आधार पर प्रमाणित करते हुए कहा कि उ० गो० में हवा से उत्तपन्

गंगा नदी अपवाह तंत्र से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य।

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गंगा नदी अपवाह तंत्र गंगा नदी सांस्कृतिक दृष्टि से भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी है यह भारत का सबसे बड़े अपवाह तंत्र का निर्माण करती है। यह नदी उत्तराखंड राज्य के गोमुख के निकट गंगोत्री ग्लेशियर से निकल कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। हरिद्वार के निकट गंगा मैदानी भाग में प्रवेश करती है। गंगा नदी में अन्य नदियों के मिलने वाले संगम स्थल निम्न है:- भागीरथी+अलकनन्दा             =      देवप्रयाग मंदाकिनी+अलकनन्दा।           =     रुद्रप्रयाग पिण्डार+अलकनन्दा               =      कर्णप्रयाग धौलीगंगा+अलकनन्दा             =     विष्णुप्रयाग गंगा+यमुना                            =     प्रयाग गंगा नदी भारत मे सबसे अधिक अवसाद ढोने वाली नदी है जिसके कारण इसको भारत का सबसे बड़ा अपवाह तंत्र का निर्माण करने वाली नदी माना जाता है। गंगा नदी प्रारम्भ में दक्षिण दिशा में फिर दक्षिण पूर्व दिशा में फिर पूर्व दिशा में बहती है। जब यह पश्चिम बंगाल में पहुचती है तो भागीरथी और हुंगली नामक दो वितिरीकाओ में बंट जाती है। गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी यमुना है। महत्वपूर्ण बिंदु:- गंगा नदी भारत और बा

परीक्षाओं में अपरदन चक्र से आये प्रश्न अब गलत नही होंगे।

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अपरदन चक्र  भू-विज्ञान के क्षेत्र में चक्रीय पद्धति का अवलोकन सर्वप्रथम स्कॉटिश भूगोलवेत्ता जेम्स हटन द्वारा 1785 ई. में किया गया।  उन्होंने पृथ्वी के इतिहास की चक्रीय प्रकृति की संकल्पना का प्रतिपादन किया।  हट्टन की परिभाषा " न तो आदि का कोई लक्षण है और न ही अंत का भविष्य" एक सर्वमान्य परिभाषा मानी जाती है। इसी आधार पर हट्टन ने एकरूपतावाद की संकल्पना दी। आगे चलकर अमेरिकी विद्वान विलियम मोरिस डेविस ने अपरदन चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में किया। डेविस का अपरदन चक्र अपरदन के चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन डेविस ने किया।  जिसे भौगोलिक चक्र कहा जाता है। डेविस ने अपने भौगोलिक चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन 1899 में किया।  परन्तु जर्मन विद्वानों ने इस संकल्पना की कटु आलोचना की तथा चक्र शब्द को भ्रामक बताया। इन आलोचकों में वाल्टर पेंक सर्वप्रमुख है। पेंक ने  डेविस के अपरदन चक्र को स्वीकार किया परन्तु उनके द्वारा प्रतिपादित भौगोलिक चक्र को अस्वीकार कर दिया। तथा पेंक ने नए अपरदन चक्र का प्रतिपादन किया। डेविस के अनुसार  "भू-दृश्य का वि