परीक्षाओं में अपरदन चक्र से आये प्रश्न अब गलत नही होंगे।



अपरदन चक्र 

भू-विज्ञान के क्षेत्र में चक्रीय पद्धति का अवलोकन सर्वप्रथम स्कॉटिश भूगोलवेत्ता जेम्स हटन द्वारा 1785 ई. में किया गया। 

उन्होंने पृथ्वी के इतिहास की चक्रीय प्रकृति की संकल्पना का प्रतिपादन किया। 

हट्टन की परिभाषा " न तो आदि का कोई लक्षण है और न ही अंत का भविष्य" एक सर्वमान्य परिभाषा मानी जाती है।

इसी आधार पर हट्टन ने एकरूपतावाद की संकल्पना दी।

आगे चलकर अमेरिकी विद्वान विलियम मोरिस डेविस ने अपरदन चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में किया।

डेविस का अपरदन चक्र

अपरदन के चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन डेविस ने किया। 

जिसे भौगोलिक चक्र कहा जाता है।

डेविस ने अपने भौगोलिक चक्र की संकल्पना का प्रतिपादन 1899 में किया। 

परन्तु जर्मन विद्वानों ने इस संकल्पना की कटु आलोचना की तथा चक्र शब्द को भ्रामक बताया।

इन आलोचकों में वाल्टर पेंक सर्वप्रमुख है।

पेंक ने  डेविस के अपरदन चक्र को स्वीकार किया परन्तु उनके द्वारा प्रतिपादित भौगोलिक चक्र को अस्वीकार कर दिया।

तथा पेंक ने नए अपरदन चक्र का प्रतिपादन किया।

डेविस के अनुसार  "भू-दृश्य का विकास एक चक्र से होकर गुजरता है एवं इस चक्र का एक निश्चित विकास क्रम होता है।"

इस विकास क्रम को तीन मुख्य अवस्थाओं में बांटा गया है।

जिसे उन्होंने युवावस्था (Youth Stage), 
प्रौढावस्था (Maturity Stage) एवं वृद्धावस्था (Old Stage) कहा है। 

अपरदन चक्र को डेविस ने भौगोलिक चक्र (Geographic Cycle) कहा है।

डेविस के अनुसार  "भू-दृश्य संरचना, प्रक्रम एवं अवस्था का प्रतिफल है।" 

यही संरचना प्रक्रम और अवस्था डेविस के त्रिकट कहलाते हैं।

प्रक्रम के अंतर्गत वे सभी शक्तियां (अंतर्जात एवं बर्हिजात) आती हैं, जिनसे पृथ्वी के धरातलीय रूप में परिवर्तन होता है। 

डेविस ने अपने सिद्धांत का प्रतिपादन अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ज्योग्राफिकलएसेज' में किया। 

यह सिद्धांत USA के ओहियो घाटी के अध्ययन पर आधारित है।

अपरदन चक्र की अवस्थाएं

डेविस के अनुसार स्थलखंड के उत्थान की क्रिया अचानक एवं अति-लघुकालीन क्रिया है तथा उत्थान की क्रिया के समापन के बाद ही अपरदन का कार्य प्रारंभ होता है। 

अपरदन का कार्य तीन अवस्थाओं में होता है:-

(1). युवावस्थाः-

इस अवस्था में तलीय अपरदन (Vertical | Erosion) का कार्य होता है। 

इस प्रकार युवावस्था बढ़ते उच्चावच CE का काल होता है एवं इसके अंत में सर्वाधिक उच्चावच पाया जाता है। 

साथ ही इस अवस्था के अंत में प्रारंभिक धरातल बिलकुल ही समाप्त हो जाता है।

विशेषताएं

1-गहरी एवं संकरी V आकार की घाटियों विकास
2- तीव्र ढाल
3-तीव्र शीर्ष अपरदन के कारण सरिता अपहरण 
4- जलज गर्तिकाओं का निर्माण
5-अंतर्गथित पर्वत स्कंध 
6-प्रपाती एवं जल प्रपात 
7 गार्ज
8 कैनियन

(2). प्रौढ़ावस्था :-

इस अवस्था में तलीय अपरदन की तुलना में पार्श्व अपरदन (Lateral Erosion) की क्रिया अधिक तेजी से होती है। 

अतः प्रौढ़ावस्था घटते उच्चावच का काल है। 

विशेषताएं 

(i) चौड़ी V आकार की घाटी
(II)मंद ढाल। 
(iii) नदियों का विसर्पण। 
(iv) घाटी की तली का विस्तार एवं निक्षेपण की क्रिया का प्रारंभ होना। 
(v) बाढ़ के मैदान का निर्माण। 
(vi) गोखुर झील का निर्माण। 
(vii) प्राकृतिक तटबंधों का निर्माण।

(3). वृद्धावस्था :-

इस अवस्था में ढाल अत्यंत ही न्यून हो जाता है एवं नदी की अपरदन क्षमता समाप्त हो जाती है। 

समस्त क्षेत्र एक नीचा एवं लगभग समतल मैदान में परिवर्तित हो जाता है, जिसे पेनिप्लेनकहा जाता है।



पेनिप्लेन वास्तव में समतल धरातल का मैदान नहीं है, बल्कि यह एक उर्मिल निम्न भूमि है, जिसमें यत्र-तत्र प्रतिरोधी चट्टानों के अवशेष टीलों के रूप में मौजूद रहते हैं, जिन्हें मोनौंडनॉक कहा जाता है।

इस प्रकार विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए एक उत्थित स्थलखंड अपरदन की प्रक्रिया द्वारा अंततः एक सम्प्राय मैदान में परिवर्तित हो जाता है।

क्रिकमे ने पनीप्लेन Peneplain) की जगह पैनप्लेनशब्द का प्रयोग किया है। 

चूंकि नदियां भू-तल पर अपरदन द्वारा समतल स्थापित करने वाली शक्तियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। 

अपरदन चक्र से संबंधित कुछ अन्य विद्वानों की संकल्पनाएं - 

1-किंग (L.C.King)- पेडिप्लेनेसन चक्र

2-क्रिकमे (C.H.Crikmay)- पैनप्लेनेसन चक्र

3-पफ़ एवं थामस (J.C.Push and F.Thomas)- सवाना का अपरदन चक्र 
 
4-मैरी मोरीसावा (Marie Morisawa)- टेक्नो-ज्यॉमेट्री मॉडल

5-शम्म एवं लिचटी (S.A.Schumm and R.W.Lichty) इपिसोडिक हरोजन थियरी 

6-लॉसन (A.C.Lawson)- पैनफैन

7  पेंक (Penk) भू आकृतिक चक्र 
8 (King) स्थलाकृतिक चक्र


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अमित कुमार शुक्ल
Blogger/C.S./G.A.S./Geography
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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