समुद्र से जुड़े परीक्षोपयोगी महत्वपूर्ण जानकारी।


समुद्र विज्ञान के अंतर्गत उच्चस्तरीय परीक्षाओं जैसे नेट, जेआरएफ, संघ लोकसेवा आयोग, राज्य लोकसेवा आयोग, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड की टीजीटी, पीजीटी आदि परीक्षाओं में अधिकांश प्रश्न पूछे जाते हैं।

इस आधार पर इन परीक्षाओं में पूछे जाने वाले प्रश्नो को ध्यान में रखकर हमने महत्वपूर्ण तथ्यों को तैयार किया है जिसे आप आसानी से समझ सकते हैं।
तो आइए जानते हैं:-

महत्वपूर्ण तथ्य

प्रसिद्ध विद्वान कार्ल जोपरीज ने कहा है कि हवाएँ सागरीय जल को तली तक आलोड़ित करती है, अर्थात् हवाओं से उत्तपन्न धाराओं में सतह से लेकर तली तक जल सामूहिक रूप से आगे बढते है।
जबकि प्रयोगों के आधार पर फिण्डले ने कहा कि सागरीय जल को हवाएँ 30 - 60 फीट की गहराई तक ही आलोडित कर पाती हैं। 
गहराई के बढते जाने से जल का घनत्व भी बढ जाता है, परिणामस्वरूप वायु भारी जल को गतिशील नहीं कर पाती है।

पृथ्वी के परिभ्रमण के कारण सागरीय जल उ० गोलार्द्ध में दाहिने तथा द० गो० में बायीं ओर मुड़ जाती है। 
इस तथ्य की खोज सर्वप्रथम नानसेन ने किया, जिसे बाद में एकमेन ने गणितीय आधार पर प्रमाणित करते हुए कहा कि उ० गो० में हवा से उत्तपन्न धारा उसकी दिशा से दाहिनी ओर 45° के कोण पर झुक जायेगी। 

इसी प्रकार द० गो० में 45° बायीं ओर झुकाव होगा। सतह से नीचे जाने पर यह इतना बढ़ जाता है कि धारा हवा के विपरीत दिशा में प्रवाहित होने लगती है।

गल्फस्ट्रीम की खोज सर्वप्रथम पोंस - डी- लियोन द्वारा 1513 में की गई। 
फ्लोरिडा की धारा जब एण्टीलीस धारा का जल समाविष्ट कर हेटरस अन्तरीप के आगे बढ़ती है तो वह गल्फस्ट्रीम के नाम से जानी जाती है।

एल निनो तथा दक्षिणी दोलन एक-दूसरे से संबंधित बताये जाते हैं। 
अत: इन्हें सम्मिलित रूप से इन्सो (ENSO) कहा जाता है। 
जलवायु विज्ञानी इन्सो को भूमण्डलीय प्राकृतिक प्रकोप तथा विनाश का पर्याय मानते है। 
वास्तव में एल निनो एवं ला निनो के बीच चक्रीय व्ववस्था केअंतर्गत सागर तल पर वायुमण्डलीय दाब में होने वाले परिवर्तन के लिए दक्षिणी दोलन सागरीय गति (तरंगों) एवं पवन के मध्य पारस्परिक क्रिया का द्योतक है।

महाद्वीपीय मग्न तट की औसत गहराई 100 फैदम (1 फैदम =6 फीट) तथा ढाल 1°― 3° के बीच होता है।

सामान्य रूप से मग्नतटों की औसत चौड़ाई 48 km(30 मील) होती है। 
शेफर्ड महोदय ने मग्न तटों की औसत चौड़ाई 42 मील (67.2 km) तथा गहराई 72 फैदम बतायी जाती है।

सबसे चौड़े मग्न तट आर्कटिक महासागर (100-300 मील)का है।

समस्त महासागरीय नितल के क्षेत्रफल के 8.6% भाग पर मग्नतट पाये जाते है।

भारत के पूर्वी तट के मग्नतट की औसत चौड़ाई 50 km है जो पश्चिमी तट के मग्नतट की एक तिहाई ही है।

महाद्वीपीय मग्नढाल पर जल की गहराई 200-2000 m तक होती है। 
भारत के कालीकट तट के पास 5°―15° कोण वाले ढाल पाये जाते है।

समस्त सागरीय क्षेत्रफल के केवल 8.5% भाग पर ही मग्न ढाल पाये जाते है।

सर्वाधिक मग्न ढाल अटलांटिक महासागर में 12.4% है। प्रशांत में 7% तथा हिन्द महासागर में 6.5% है।

गहरे महासागरीय मैदान की गहराई 3000-6000 m तक होती है। 
समस्त महासागरीय क्षेत्रफल के लगभग 75.9% भाग पर सागरीय मैदान का विस्तार पाया जाता है।

सर्वाधिक सागरीय मैदान का विस्तार प्रशांत महासागर में 80.3% है। 
इसके बाद हिन्द में 80.1% तथा आंध्र में 54.9% भाग पर सागरीय मैदान फैला है।

20°N-60°S अक्षांशों के बीच सागरीय मैदानों का विस्तार सर्वाधिक पाया जाता है। 
60°-70° उत्तरी अक्षांशों के बीच इनका अभाव पाया जाता है।

महासागरीय गर्त महासागरीय नितल के लगभग 7% भाग पर फैली है। 
इनकी स्थिति प्रायः तट के सहारे पर्वतीय मेखलाओं के सामने मिलती हैं। 
द्वीपों के सहारे भी गर्त पाये जाते है।

महासागरी गर्तों को आकार की दृष्टि से दो वर्गों में बाँटा जाता है :-
(1) कम क्षेत्रफल वाले किन्तु अधिक गहरे खड्ड की गर्त तथा 
(2) लम्बे खड्ड वाली गर्त जिसे खाई (Tranch) कहते है।

महासागरों में कुल 57 गर्तों का पता चला है, जिसमें से 32 गर्त प्रशांत में, 19 आंध्र में तथा 6 हिन्द में मिला है।

महाद्वीपीय मग्नतट तथा मग्नढाल पर संकरी, गहरी तथा खड़ी दीवार से युक्त घाटियों को महासागर के अंदर होने के कारण अन्त: सागरीय कंदरा या कैनियन कहते है। इसका औसत ढाल 1.7% होता है। 
शेफर्ड तथा बीयर्ड ने 102 कैनियनों का अध्ययन करने के बाद बताया कि कैनियन के ऊपरी भाग में ढाल 11.62% मध्यवर्ती भाग में 9.63% तथा निचले भाग में 4.7% होता है।

अन्त: सागरीय कैनियनो की गहराई 610-915 m तक होती है। 
इन कंदराओं में महासागरीय  निक्षेप भी पाये जाते है। पार्श्व भाग पर असंगठित पदार्थों के जमाव का अभाव होता है, जबकि तल में रेत, चीका, सिल्ट, बजरी तथा कंकडों के जमाव मिलते है।

अन्त: कंदराओं की उत्तपत्ति के विषय में सभी विद्वान इस बात से सहमत है कि इस अभिनव भूवैज्ञानिक स्थलरुप का (विकास) निर्माण कैनोजोइक कल्प में हुआ है। इनमें कुछ का मानना है कि ये क्वाटरनरी युग में निर्मित हुए है।

कैनियन के निर्माण से संबंधित चार सिद्धान्त है-

(1) पटलविरूपण सिद्धान्त 
इसके अनुसार भूसंचलन के कारण महाद्वीपीय मग्न तट तथा मग्न ढाल पर भ्रंशन के कारण ग्राबेन का निर्माण हो जाता है।
जानसन तथा बौरकार्ट के अनुसार कैनियन का निर्माण भूसंचलन के कारण क्वारटनरी युग की नदियों की घाटियों के अवतलन  तथा जलमग्न होने के कारण हुआ है।

(2) भूपृष्ठीय अपरदन सिद्धान्त 
J D डाना ने 1888 में इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। शेपर्ड ने बताया कि स्थल में निर्गमन होने से उस पर नदियों ने अपरदन द्वारा गहरी घाटियों का निर्माण किया। 
बाद में निमज्जन के कारण उनमें जमाव होने से वे लुप्त हो गयी। 
आगे चलकर पदार्थों के नीचे की ओर सर्पण के कारण ये घाटियाँ कैनियन के रूप में दृष्टि गोचर हो गयी। 
हाल ने भी इस मत का समर्थन किया है।

(3) अन्त: सागरीय घनत्व तरंग सिद्धान्त 
सैलिस तथा फ्लोरेल के अनुसार सागरीय भागों में तापक्रम एवं घनत्व में भिन्नता के कारण तरंगों की उत्तपत्ति से जलमग्न तट तथा ढाल से ढीले पदार्थ सागर की ओर सरका दिये जाते है। 
जिस कारण अन्त: सागरीय कंदरा का निर्माण होता है। 

(4) पंकतरंग सिद्धान्त 
डेविस, रिदर, डेली आदि विद्वानों के अनुसार तट के पास अधिक पंक मिश्रित जलराशि के कारण सागर की ओर अन्त: सागरीय तरंग चलने लगती हैं। 
जिससे अन्त: सागरीय कंदरा का निर्माण होता है। बूचर तथा क्वेनेन ने इस मत का खंडन किया है।

आप सभी लोग वेबसाइट देखने के साथ साथ नोट्स बनाते चलें जिससे आपके पास नोट्स में तथ्य एकत्रित हो जाएगा जो आगे की परीक्षाओं में काम आएगा।

मैंने अपना नया यू ट्यूब चैनल बनाया है जो उन लोगों के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण है जो लोग प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे IAS, PCS, NET/JRF, TGT, PGT, UPTET, CTET, SSC, RAILWAY , बैंक, पुलिस,लेखपाल, UPSSSC की अन्य परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं उनके लिये भूगोल के तथ्यों को जानने के लिये परेशान नही होना पड़ेगा क्योंकि हमारे इस यू ट्यूब चैनल पर आपको सभी तथ्य उपलब्ध कराए जाएंगे वो भी बिल्कुल फ्री।

कृपया आप हमारे यू ट्यूब चैनल को सब्सक्राइब कर लें साथ ही वेल आइकन को दबाएं जिससे जैसे ही नया वीडियो अपलोड हो आप तक नोटिफिकेशन पहले पहुँच जाये।

और वीडियो को लाइक और शेयर करें।

जुड़ने के लिये लिंक पर क्लिक करें।
👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇
https://youtu.be/Rtgid5HtEVc

हमेशा नए तथ्य इस वेबसाइट पर आपको मिलते रहेंगे हमेशा इस वेबसाइट को देखते रहें। 
हमारे टेलीग्राम चैनल से जुड़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇
और अपने मित्रों  ,सम्बन्धियों को भी इसके बारे में बताएं ताकि सब लोग लाभान्वित हो सकें।
आप सबका बहुत बहुत आभार।

आप सभी अपने लक्ष्य को प्राप्त करें हम यही प्रार्थना करेंगे।

सत्य, सरल, एवं सबसे विश्वसनीय जानकारी के लिये आप हमारी वेबसाइट :- 
www.bhugolvetta.blogspot.com को निरन्तर देखते रहें।

हम प्रतिदिन नए तथ्य अपडेट करते रहते हैं।

अपने सम्बन्धियों को भी इस वेबसाइट के बारे में बताएं जिससे सबका लाभ हो 


हमारा प्रयास कि हम बनायें एक बेहतरीन शिक्षित समाज।


अमित कुमार शुक्ल
Blogger/C.S./G.A.S./Geography
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)







टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जानिए भ्रंश घाटी, रैम्प घाटी, ब्लॉक पर्वत और होर्स्ट पर्वत क्या होते हैं?

विश्व की गर्म एवं ठंडी हवाएं।

परीक्षाओं में भूगोल की प्रमुख पुस्तकें व उनके लेखकों के सम्बंध में पूछे जाने वाले प्रश्न।