वायुदाब पेटियों के बारे में सबसे सरल व सबसे महत्वपूर्ण जानकारी।


वायुदाब की पेटियां:-

यदि पृथ्वी स्थिर होती है , तो विषुवत रेखा के निकट निम्न वायुदाब एवं ध्रुवो के निकट उच्च वायुदाब की पेटियां मिलती है, परन्तु पृथ्वी के घूर्णन के कारण उपरोक्त दोनों पेटियों के अलावा दोनों ही गोलार्द्धों में वायुदाब की और दो - दो पेटियां पाई जाती है।

इस प्रकार वायुदाब की कुल सात पेटियां ग्लोब पर देखने को मिलती है, जिन्हें दाब कटिबन्ध भी कहा जाता है।

जल एवं स्थल के असमान वितरण के कारण वायुदाब की पेटियों में व्यवधान उत्पन्न हो जाता है।

उत्तरी गोलार्द्ध में इन मेखलाओ के कई केंद्र होते हैं परन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध में ये मेखलाएँ अविच्छिन्न रूप में पाई जाती है।





{1} विषुवतीय निम्न दाब पेटी:-

इस पेटी का विस्तार विषुवत रेखा के दोनों ओर 5 अंश अक्षांशो तक मिलता है।

परन्तु यह विस्तार स्थायी नही होता है, बल्कि सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायन होने के कारण इस पेटी का खिसकाव होता रहता है।

विषुवत रेखा पर साल भर सूर्य की किरणें लगभग लम्बवत पड़ती है जिसके कारण साल भर तापमान ऊंचा रहता है।

अधिक तापमान के कारण इस क्षेत्र की वायु गर्म होकर ऊपर उठती है जिससे निम्न भार की पेटी का निर्माण होता है।

इस कम दाब की पेटी का प्रत्यक्ष सम्बन्ध तापमान से है। अतः इसे ताप जन्य न्यून वायुदाब की पेटी कहा जाता है।

इस क्षेत्र में सामान्यतः धरातलीय क्षैतिज पवन नही चलते हैं क्योंकि इस कटिबन्ध में आने वाली पवन इसकी सीमाओं के समीप पहुँचते ही गर्म होकर ऊपर उठने लगती है इस प्रकार इस कटिबन्ध में केवल ऊर्ध्वाधर वायु धाराएं ही पाई जाती है।

वायुमंडलीय दशाओं अत्यधिक शांत रहने के कारण ही इस कटिबन्ध को डोलड्रम या शांत पेटी कहा जाता है।

जुलाई महीने में इस पेटी का विस्तार उत्तरी अफ्रीका में 20 अंश उत्तरी अक्षांश एवं भारतीय उपमहाद्वीप में 30 अंश उत्तरी अक्षांश तक हो जाता है जनवरी में यह पेटी हिन्द महासागर में 10 अंश दक्षिणी अक्षांश तक खिसक जाती है।





{2} उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब पेटी:-

दोनों गोलार्धों में 25 अंश से 35 अंश अक्षांशों के बीच उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब की पेटी पाई जाती है।

इस पेटी की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि भू तल पर यहां कई उच्च वायुदाब केंद्रों अथवा कोशो की स्थापना हो जाती है।

इस पेटी के उच्च दाब का कारण तापीय नही है बल्कि यह पृथ्वी की दैनिक गति एवं वायु के अवतलन से सम्बंधित है, अर्थात यह उच्च वायुदाब गतिजन्य है।

इस पेटी का निर्माण विषुवत रेखीय क्षेत्र से ऊपर उठी हुई वायु तथा उपध्रुवीय निम्न वायुदाब से ऊपर उठी हुई वायु के ठंडा होकर नीचे उतरने के कारण होता है।

इस पेटी में उच्च वायुदाब की उत्पत्ति का दूसरा कारण कोरियालिस बल है।

इस वायुदाब की पेटी को अश्व अक्षांश भी कहा जाता है क्योंकि प्राचीन काल मे घोड़ो को ले जाने वाली नौकाओं को शांत वायुमंडलीय दशाओं के कारण इन अक्षांशो में काफी कठिनाई होती थी।
ऐसी स्थिति में वे अपनी नौकाओं का भार कम करने के लिए घोड़ो को समुद्र में फेंक देते थे।

इस पेटी में ऊपर से नीचे उतरने के कारण हवाएं दबती हैं एवं उनके तापमान में क्रमशः बृद्धि होती है।
इस प्रकार प्रति चक्रवातीय परिस्थिति के कारण यहाँ स्वच्छ मेघ रहित आकाश पाए जाते हैं।

विश्व के सभी उष्ण मरुस्थल इसी पेटी में स्थित हैं।





{3} उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी:-

आर्कटिक एवं अंटार्कटिक वृतों के समीप 60 से 70 अंश अक्षांशों के बीच दोनों ही गोलार्धों में उप ध्रुवीय निम्न दाब की पेटी पाई जाती है।

वर्ष भर निम्न तापमान के बावजूद यहाँ निम्न वायुदाब पाए जाने का मुख्य कारण यह है कि पृथ्वी के घूर्णन गति के कारण वायु ऊपर की ओर उठा दी जाती है जिसके फलस्वरूप कम वायुदाब का निर्माण होता है।
इस प्रकार यहाँ कम वायुदाब का कारण गतिक है।

इस पेटी में उपोष्ण उच्च दाब एवं ध्रुवीय उच्च दाब क्षेत्र से आने वाली वायु आपस मे टकराती है एवं ऊपर उठ जाती है।

इन विपरीत दोनों दिशाओं से आने वाली वायु के तापमान में अधिक अंतर के कारण इस कटिबन्ध में शीतोष्ण चक्रवातों की उत्पत्ति होती है।




ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी :-

ध्रुवीय क्षेत्रो में अत्यधिक निम्न तापमान के कारण इस उच्च वायुदाब की पेटी का निर्माण होता है।






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अमित कुमार शुक्ल
Blogger/C.S./G.A.S. प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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