अल-नीनो और ला-नीना से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य



    अल-नीनो एवं ला-नीना :-

लगभग 3 से 8 वर्षो के अन्तराल के पश्चात महासागरों एवं विश्व की जलवायु में एक विचित्र परिवर्तन देखने को मिलता है।

इसकी शुरुआत पूर्वी प्रशांत महासागर से होती है एवं लगभग एक वर्ष की अवधि के लिये इसका प्रभाव सम्पूर्ण विश्व मे फैल जाता है।

19 वी शताब्दी में ही पेरू के मछुआरों ने यह पाया कि पेरू के तट पर कुछ वर्षों के अन्तराल पर एक गर्म जलधारा प्रवाहित होने लगती है।

इस गर्म जलधारा की उत्पत्ति क्रिसमस के समय होती है एवं इसके प्रभाव से इस महासागरीय क्षेत्र में मछलियां विलुप्त हो जाती है।

इसे उन्होंने क्रिसमस के बच्चे की धारा का नाम दिया।




सामान्य परिस्थितियों में दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर पेरू (हम्बोल्ट) की ठंडी जलधारा प्रवाहित होती है।

विषुवत रेखा के निकट यह धारा पश्चिम की ओर मुड़कर द० विषुवतीय जलधारा का निर्माण करती है।
इस जलधारा की उत्पत्ति का कारण सतह के नीचे के ठंडे जल का तेजी से ऊपर आना (Upwelling) है।
यह ठंडा जल अपने साथ काफी मात्रा में पोषक तत्व लाता है, जिससे इस क्षेत्र में प्लैंकटन कई अधिकता होती है।

समुद्री मछलियां भोजन के लिये इन्ही प्लैंक्टनो पर निर्भर करती है।

अल-नीनो की उत्पत्ति के साथ ही तटवर्ती क्षेत्र में सतह के नीचे के जल का ऊपर आना बंद हो जाता है।

इसके फलस्वरूप ठंडे जल का स्थानांतरण पश्चिम से आने वाले गर्म जल द्वारा होने लगता है एवं प्लैंकटन तथा मछलियां विलुप्त होने लगती है।

इन मछलियों पर निर्भर रहने वाले अनेक पक्षी भी मरने लगते हैं।

सामान्य परिस्थितियों के सूर्य के दक्षिणायन के समय ऑस्ट्रेलिया एवं इंडोनेशिया के निकटवर्ती क्षेत्रों के निम्नदाब रहता है एवं पेरू के तटवर्ती क्षेत्रों में उच्चदाब रहता है।

इसके फलस्वरूप इंडोनेशिया एवं ऑस्ट्रेलिया में में वर्षा होती है तथा पेरू के तटवर्ती क्षेत्र में शुष्कता रहती है।

परन्तु कभी कभी इंडोनेशियाई/ऑस्ट्रेलियाई निम्नदाब के स्थान पर उच्चदाब का निर्माण हो जाता है एवं पूर्वी प्रशांत महासागर में निम्नदाब का निर्माण हो जाता है।

वाकर ने इस घटना को दक्षिणी दोलन कहा।

अल-नीनो के कारण ,दक्षिणी -मध्य प्रशांत महासागर में भयानक उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति होती है।

जब पश्चिमी प्रशांत महासागर के उच्चदाब क्षेत्र का फैलाव फिलीपींस, श्रीलंका एवं भारत तक हो जाता है तो इस भाग में सूखा पड़ता है।

अल-नींनो की घटनाओं के बीच एक विपरीत एवं पूरक घटना देखने को मिलती है।

जिसे ला-नीना कहा जाता है।

ला-नीना घटना के समय मध्य एवं पूर्वी प्रशांत महासागर की सतह का तापमान न्यूनतम हो जाता है।

इसके कारण तीव्र स० पू० व्यापारिक पवन चलने लगती है। इस पवन के प्रभाव से पूर्वी प्रशांत महासागर के सतह का जल ,जलधारा के रूप में पश्चिम की ओर प्रवाहित होने लगता है एवं नीचे का ठंडा जल ऊपर आ जाता है।

ला-नीना का सम्बंध उत्तरी अमेरिका के सूखा से सम्बंधित माना जाता है।

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 पं० अमित कुमार शुक्ल "गर्ग"

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