परीक्षा के लिये वलन और भ्रंशन के बारे में इतना ही पढ़ना काफी है।


  बलन एवं भ्रंशन:-

जब धरातल के स्पर्श रेखीय बलों के प्रभाव से अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र की चट्टानों पर दोनों तरफ से दबाव पड़ता है तो चट्टानों की परतें मुड़ जाती हैं एवं ऊपर उठ जाती हैं, फलस्वरूप पर्वत श्रेणी का निर्माण होता है।

अतः क्षैतिज भू -संचलन को पर्वत निर्माणक भू-संचलन भी कहा जाता है।

जब महाद्वीप का कोई भाग ,अपने आस पास की सतह से ऊँचा उठ जाता है तो उसे उत्थान (Uplifitment) कहा जाता है। परन्तु जब सागर का जलमग्न भाग सागर तल से ऊपर उठ जाता है ,तो उसे निर्गमन (Emergence) कहा जाता है।

जब स्थलखण्ड का एक भाग अपने समीप के सतह से नीचे धंस जाता है, तो इस क्रिया को अवतलन (Subsidence) कहा जाता है। परन्तु जब स्थलखण्ड सागर तल के नीचे चला जाता है एवं जलमग्न हो जाता है तो इस क्रिया को निमज्जन (Submergence) कहा जाता है।

निमज्जन की क्रिया स्थलखण्ड के नीचे धंसने या सागरतल के ऊपर उठने से हो सकती है।





वलन (Folds):-

क्षैतिज या स्पर्शरेखीय बलों के प्रभाव से चट्टानों में दबाव पड़ता है, फलस्वरूप चट्टानों में वलन की क्रिया होती है।

वलन के फलस्वरूप शिखरों एवं द्रोणियों का निर्माण होता है।

शिखरों को अपनति एवं गर्तों को अभिनति या सन्नति कहा जाता है।

चट्टानों की बनावट एवं संपीड़न बलों की भिन्नता के कारण विभिन्न प्रकार बलनों का निर्माण होता है।



वलन के प्रकार (Type of Folds):-


{1} सममित वलन (Symmetrical fold):-

इसमे वलन की दोनों भुजाएं समान रूप से झुकी हुई होती हैं।

इसे सरल मोड़ भी कहा जाता है।

जब दबाव शक्ति की तीव्रता कम एवं दोनों दिशाओं से एक समान हो तो इस प्रकार के वलन का निर्माण होता है।

जिसे :- स्विट्जरलैंड का ज़ुरा पर्वत


{2} असममित वलन (Asymmetrical fold):-

इसमे वलन की दोनों भुजाओं का झुकाव असमान रहता है।

कम झुकाव वाली भुजा अपेक्षाकृत लम्बी एवं अधिक झुकाव वाली भुजा छोटी होती है।

जैसे:- इंग्लैंड का दक्षिणी पेनाइन पर्वत



{3} एकनति वलन (Monoclinal fold):-

इसमे वलन की एक भुजा बिल्कुल खड़ी एवं दूसरी भुजा झुकी हुई होती है।

जैसे :- ऑस्ट्रेलिया का ग्रेट डिवाइडिंग रेंज



{4} अधिवलन (Over fold):-

इसमे वलन की एक भुजा बिल्कुल खड़ी न रहकर कुछ आगे की ओर निकली हुई रहतिया है एवं तीव्र ढाल बनाती है जबकि दूसरी भुजा जो अपेक्षाकृत लम्बी होती है कम झुकी होने के कारण धीमी ढाल बनाती है।

इसका निर्माण तब होता है जब दबाव शक्ति एक दिशा में अधिक तीव्र होती है ।

जैसे:- कश्मीर हिमालय की पीर पंजाल श्रेणी


{5} समनत वलन (Isoclinical fold):-

इसमे वलन की दोनों भुजाएं एक ही ओर झुकी होती है एवं लगभग समानांतर होती है ।

इस वलन में आगे का भाग लटकता हुआ जान पड़ता है।

जैसे:- पाकिस्तान का कलाचिन्ता पर्वत


{6} परिवलन (Recumbent):-

इसमे वलन की दोनों भुजाएं इतनी अधिक झुक जाती है कि वे एक दूसरे के ऊपर क्षैतिज अवस्था मे आ जाती है।

दबाव शक्ति की तीव्रता के कारण पूरा वलन धरातल के समानांतर हो जाता है।

जैसे:- UK का कैरिक कैसल पर्वत



{7} अधिक्षिप्त या प्रतिवलन (Overthrust or Overturned fold):-

जब समपीड़नात्मक बल बहुत अधिक प्रभावशाली होता है तो चट्टानों की परतें वलन अक्ष पर टूट जाती है और एक दूसरे पर चढ़ जाती है या आगे बढ़कर दूसरे खण्ड पर आरोपित हो जाती है।

जैसे:- कश्मीर का पीर पंजाल श्रृंखला एवं गढ़वाल हिमालय में भी देखने को मिलते हैं।



{8} समपनति या पंखाकार वलन (Anticlinorium or Fan Fold):-

कभी कभी विभिन्न स्थानों पर संपीड़न की विभिन्नता के कारण वृहत अपनति के अंतर्गत कई छोटे छोटे अपनतियां एवं अभिनतियां देखने को मिलती है इसे ही समपनति या पंखाकार वलन कहते हैं।

जैसे:- दक्षिणी स्कॉटलैंड का पर्वतीय प्रदेश एवं छोटानागपुर का सिंहभूमि।


9 समभिनति ( Synclinorium):-

जब असमान संपीड़न के कारण वृहत अभिनति के अन्तर्गत कई छोटी छोटी अपनतियां एवं अभिनतियां बन जाती है, तो इस वृहत अभिनति को समभिनति कहा जाता है।

जैसे:- पाकिस्तान का पोर्टवार पर्वत क्षेत्र



भ्रंशन (Faulting):-

पृथ्वी के अंतर्जात बल के कारण भू पृष्ठ की चट्टानों में दरार का निर्माण हो सकता है।
ऐसी दरारों को विभंग कहा जाता है।

ऐसा विभंग जिसमे चट्टाने टूटकर एक तल के सहारे स्थानांतरित हो जाती है भ्रंशन कहलाता है।

यह दो प्रकार का होता है:-

1 सामान्य भ्रंश
2 उत्क्रम भ्रंश






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अमित कुमार शुक्ल
Blogger/C.S./G.A.S. प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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