पवन/हवाओं से आने वाले एक भी प्रश्न अब नही छूटेंगे।
पवन
पवन पृथ्वी के धरातल पर वायुदाब की विषमताओं के कारण हवा उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर प्रवाहित होती है।
क्षैतिज रूप से गतिशील इस हवा को ही पवन कहा जाता है।
पृथ्वी के घूर्णन के कारण अपकेंद्रीय बल की उत्पत्ति होती है एवं पवन की दिशा फेरेल नियम , वाइज वैलेट नियम, एवं हेडली नियम द्वारा होती है।
फेरेल नियम के अनुसार उत्तरी गोलार्द्ध में पवन दाहिनी ओर एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती है।
ऐसा विषुवत रेखा पर घूर्णन की गति तेज एवं ध्रुवों पर धीमा होने के कारण होता है।
वाइज वैलेट के नियम के अनुसार यदि उत्तरी गोलार्द्ध में पीठ की ओर से पवन चल रही हो तो उच्च वायुदाब दाहिनी ओर एवं निम्न वायुदाब बायीं ओर होता है।
जब वायु दाब प्रवणता बल एवं विक्षेपण बल में संतुलन स्थापित हो जाता है- तब पवन का प्रवाह समदाब रेखाओं के समानांतर हो जाता है।
इस प्रकार समदाब रेखाओं के समानांतर गतिशील वायु को भू विक्षेपी पवन कहा जाता है।
भू विक्षेपी पवन अपने आदर्श रूप में वायुमंडल के ऊपरी भागों में ही पाया जाता है, क्योकि वहाँ घर्षण का प्रभाव नगण्य होता है एवं समदाब रेखाएं सीधी होती है।
पवन के प्रकार:-
[A] प्रचलित पवन
1 डोलड्रम एवं विषुवत रेखीय पछुवा पवन
2 व्यापारिक पवन
3 पछुवा पवन
4 ध्रुवीय पवन
[B] सामयिक पवन
1 मानसूनी पवन
2 स्थल समीर एवं समुद्र समीर
3 पर्वत समीर एवं घाटी समीर
[C] स्थानीय पवन
नोट:- स्थानीय पवनो के बारे में विस्तृत अध्ययन के लिये पिछले पोस्ट में दिया गया टॉपिक स्थानीय हवाएं पढ़ें।
{A} प्रचलित पवन:-
इसे सनातनी या ग्रहीय पवन भी कहा जाता है।
ये पवन साल भर एक ही दिशा में सुनिश्चित पेटियों में प्रवाहित होती है।
इसके अंतर्गत निम्न पवनों को शामिल किया जाता है:-
[1] डोलड्रम एवं विषुवत रेखीय पछुवा पवन
विषुवत रेखा के दोनों ओर 5 अंश अक्षांश तक निम्न दाब की पेटी होती है ।
यहाँ पवन में क्षैतिज गति नही होती है।
पवन शांत होने के कारण इसे शांत पेटी या डोलड्रम कहा जाता है।
यहाँ वायु का प्रवाह ऊपर की ओर होता है।
डोलड्रम का विस्तार प्रत्येक स्थान पर क्रमबद्ध मेखला के रूप में नही होता है।
इस डोलड्रम की पेटी में दिन के समय संवहन धाराएं उठती हैं एवं दोपहर के बाद बिजली की चमक एवं गरज के साथ वर्षा होती है।
[2] व्यापारिक पवन
उपोष्ण उच्च दाब कटिबन्ध से विषुवतीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध की ओर दोनों गोलार्धों में चलने वाली पवन को वाणिज्य पवन कहा जाता है।
इसे अंग्रेजी में ट्रेड विंड कहा जाता है।
व्यापारिक पवन की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण पूर्व से उत्तर पूर्व होती है।
विषुवत रेखा के समीप दोनों व्यापारिक पवनें आपस मे टकराती है एवं ऊपर उठकर मूसलाधार वर्षा करती है।
[3] पछुवा पवन
उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्ध से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध की ओर बहने वाली पवन पछुवा पवन कहलाती है।
यह पवन उत्तरी गोलार्द्ध में द०प० से उ०पू० की ओर एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में उ०प० से द०पू० की ओर प्रवाहित होती है।
पछुवा पवनो का सर्वोत्तम विकास 40 से 65 अंश दक्षिणी अक्षांश के बीच होता है जहाँ इसे गरजता चालीसा, प्रचंड पचासा, एवं चीखता साठा के नाम से जानते हैं।
उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्द्ध में यह पवन अधिक प्रचंड एवं व्यवस्थित होती है।
[4] ध्रुवीय पवन
ध्रुवीय उच्च वायुदाब कटिबन्धों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबन्धों की ओर चलने वाली पवन को ध्रुवीय पवन कहा जाता है।
उत्तरी गोलार्द्ध में यह पवन उ०पू० से द० प० की ओर एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में द०पू० से उ०प० की ओर प्रवाहित होती है।
बहुत कम तापमान वाले क्षेत्र से अपेक्षा कृत अधिक तापमान वाले क्षेत्र की ओर बहने के कारण पवन शुष्क होती है।
नोट:-
सामयिक पवनो के बारे में कल टॉपिक अपडेट होगा।
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अमित कुमार शुक्ल
Blogger/C.S./G.A.S. प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
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