क्या आपको कोरियालिस बल के बारे में यह बात पता है?


जानिए कोरियालिस बल के बारे में :-


कोरियालिस बल का प्रभाव भूमध्य रेखा पर शून्य या सबसे कम होता है।

तथा ध्रुवों पर कोरियालिस बल सर्वाधिक होता है।

कोरियालिस बल के कारण ही उत्तरी गोलार्द्ध में हवाएं अपनी मूल दिशा से दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से बायीं ओर मुड़ जाती हैं।

G.G. कोरियालिस को कोरियालिस प्रभाव के लिये जाना जाता है।

G.G. कोरियालिस एक फ्रांसीसी गणितज्ञ थे।


कोरियालिस प्रभाव क्या है?

यह हवा के अथवा पृथ्वी पर विद्यमान तरल पदार्थों के अपनी मूल दिशा से विक्षेप से सम्बंधित है।





कोरियालिस बल क्या है?

कोरिऑलिस बल एक आभासी बल है जो पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न होता है। 

वस्तुतः पृथ्वी के विभिन्न अक्षांशों में परिधि का आकार तथा केंद्र से दूरी  के कारण पृथ्वी की घूर्णन गति भिन्न भिन्न होती है। इस गति-भिन्नता के कारण कोई भी गतिमान वस्तु जो एक अक्षांश से दूसरे अक्षांश की ओर गतिमान होती है, उस पर यह बल कार्य करने लगता है। 


कोरिऑलिस बल के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में वायु की गति की दिशा के दाएं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में गति की दिशा के बाईं ओर बल लगता है।





कोरियालिस बल के कारण पछुआ हवाएं उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से बाईं ओर मुड़ जाती है।

मौसम संबंधी गतिविधियों में कोरिऑलिस बल के प्रभाव को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है-

यह बल उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब पेटी तथा उप ध्रुवीय निम्न दाब पेटियों के निर्माण में सहायक होता है।

इसके अलावा चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात के निर्माण में भी कोरिऑलिस बल का महत्त्वपूर्ण योगदान है। 

इसके  कारण चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की दिशा में घूर्णन करते हैं।





महासागरीय धाराओं  के दिशा परिवर्तन में भी यह बल सहायक होता है।

ऊपरी स्तर के वायु को प्रभावित कर यह बल जेट स्ट्रीम के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।

इसके अलावा,  यह बल दक्षिण-पश्चिमी व्यापारिक पवनें तथा मानसून पवनों के निर्माण में भी सहायक है।
भूमध्य रेखा पर कोरियालिस बल का मान शून्य होने के निम्नलिखित कारण हैं-

भूमध्य रेखा पर उत्तरी गोलार्द्ध का आभासी बल और दक्षिणी गोलार्द्ध का आभासी बल एक दूसरे को संतुलित कर देते हैं, जिससे परिणामी कोरिऑलिस बल लगभग शून्य हो जाता है।


विषुवत रेखा पर कोणीय आवेग के परिवर्तन की दर अपेक्षाकृत कम होती है जिससे यह बल कम हो जाता है।

इसके अलावा, विषुवत रेखा पर कोई  पदार्थ घूर्णन अक्ष के समानांतर होता है जिससे कोरिऑलिस बल का मान शून्य हो जाता है।





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अमित कुमार शुक्ल
Blogger/C.S./G.A.S./Geography
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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