अंडमान की जरावा जनजाति के बारे में विस्तृत एवं नवीन जानकारी।





अंडमान की जरावा जनजाति 

यह जनजाति अभी भी इतनी पुरानी दुनिया में रह रही है कि यदि आजकल के आधुनिक लोग इनसे मिलें तो अचंभित हुए बिना नहीं रह पाएंगे।

ये लोग पूरी तरह से प्रकृति की गोद में रह रहे हैं। 

इन्हें नहीं पता कि टीवी, मोबाइल, हवाई जहाज क्या होता है और इसका क्या उपयोग हो सकता है।

सरकार ने इस जनजाति को बाकी दुनिया से सिर्फ इसलिए अलग कर रखा है कि इनकी संस्कृति ना बिगड़े, अर्थात ये आदिम काल में ही जियें।

भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह में ऐसी जनजाति है जो पुरापाषाण युग मे जी रही है। 

ये न तो आग से परिचित हैं न ही इनको खेती करना आता है। 

भारत के अंडमान निकोबार द्वीपसमूह को केंद्र सरकार ने 1956 में इसे संरक्षित कर दिया। 

यहां की सभ्यता "जरावा" शिकार कर अपना पेट पालती है , आम लोगों के लिए यह जनजाति एक अजूबा है। 




अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में इस समय मूल जनजाति से 6 से 7 समूह में पाए जाते है। 

1 जरावा जनजाति

2 ओंगे जनजाति

3 ग्रेट अंडमनीज़ जनजाति

4 सेंटलिज जनजाति

5 सोमपेश जनजाति

6 बो जनजाति

आज इनमें से केवल 4 जनजाति ही बची हुई है।

सेनेटिल द्विप समूह पर आज भी हजारों साल पुराने क़बीलों की बस्तियां है। 

जरावा जनजाति मानव सभ्यता की सबसे पुरानी जनजाति मे से एक है।

यह जनजाति आज भी  पाषाण युग में जी रही है।  

जरावा के लोग आमतौर पर काले रंग और नाटे कद काठी के है। 

इस जनजाति का आधुनिक युग, या बाहरी जनजीवन से कोई सम्बन्ध नही है। 

यहाँ 400 से ज्यादा समुदाय है। 

जरावा समुदाय की अहम भूमिका को देखते हुए भारत सरकार ने 1028 किलोमीटर वर्ग क्षेत्र को रिज़र्व कर दिया। 

जरावा जनजाति बहुत खतरनाक जनजाति है इन लोगो के अपने बनाये अस्त्र -शस्त्र है। 

ये लोग अपने इलाके में आने वाले किसी भी व्यक्ति की हत्या कर दिया करते है।

इनके भोजन में शहद,केकड़ा,जंगली सुअर,मछली आदि है।

1990 में जरावा जनजाति के कुछ लोग अपने इलाकों से निकल कर बाहर आये थे। 

सरकार ने इन्हें हर सुविधा उपलब्ध करवाई किन्तु कुछ दिन के पश्चात ये लोग वापस अपने क़बीलों में चले गए। 

इन लोगो को गाने और नृत्य करने का बहुत शौक है बाहरी लोगों के संपर्क में इन्होने तंबाकू शराब आदि चीजों का सेवन किया था। 

अब इनके क्षेत्र में पर्यटकों का जाना प्रतिबंधित है।

जरावा जनजाति के लोग के पैदाइशी बच्चे का रंग अगर गोरा हो तो ये जनजाति उस बच्चे को मार डाला करती है। 

इस जनजाति में यह भी परंपरा है कि अगर कोई विधवा माँ बन जाती है तो उसे उसके बच्चे सहित मार दिया जाता हैं। 

इस जनजाति का अपना अलग ही कानून व्यवस्था है। 

भारत सरकार भारतीय संविधान इस जनजाति पर लागू नही करवा पायी। 

इनके इलाके में भारत सरकार ने सड़क मार्ग का निर्माण कार्य शुरू किया था। 

किन्तु कुछ ही दिनों में सड़क निर्माण कार्य को रोकना पड़ा था । 

क्योंकि जारवा जनजाति के लोग अपने इलाके में कोई हस्तक्षेप नहीं चाहते थे।

सभी निर्माण कार्य करने वालों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

सर्वाइवल इंटनेशनल नामक इस समूह का कहना है कि इस द्विप समूह का ह्यूमन सफ़ारी के लिए उपयोग होता हैं।  

यानी पर्यटकों के सामने इस जनजाति को एक " चिड़िया घर " की तरह पर्यटकों के सामने पेश किया जाता है। 

इस तरह का पर्यटन मानवीय गरिमा के विरुद्ध है। 

50,000 साल से यह जनजाति अपने को सीमित रखी हुई हैं।



सोसायटी फ़ॉर अंडमान निकोबार द्वीप समूह इकोलॉजी (सेन) से जुड़े समीर आचार्य एक रिपोर्ट में कहते है कि बची हुई आदिम जनजातियाँ नष्ट होने की कगार पर है।

दरअसल अंडमान निकोबार द्वीप की यह जनजाति आदिम जनजाति है और अभी पुरापाषाण युग में है। 
इन्हें "अनकोंटेक्ट ट्राइब्स " भी कहते है। 

इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर प्रमोद कुमार जारवा जनजाति के जानकार है।

इनके अनुसार विश्व भर की जनजाति के विलुप्त होने का कारण संक्रमण है।

डॉ प्रमोद कुमार कहना है कि आदिम जनजातियों को आज की आधुनिकता में लाना बहुत खतरनाक साबित होगा" इन्हें कपड़े पहनाने पर स्किन डिज़ीज़ होने की संभावनाएं हैं। 

पुरापाषाण युग मे जी रही जारवा जनजाति को अचानक आधुनिक युग में नही लाया जा सकता है। 
ये जनजातियां प्रकृति के संकेत पहचानती है। 

भारतीय पुरात्तव विभाग का मानना है कि जब सुनामी जैसे तूफ़ान से ये जनजाति अपनी रक्षा करने में सक्षम हैं तो निश्चित है कि ये जनजाति अपने आप को उसी परिस्थितियों के अनुकूल भी बना ली है। 

न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट ने भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की जरावा जनजाति की ओर ध्यान खींचा है।

इस समुदाय की परंपरागत जीवनशैली को बचाने की कोशिशें उलझन पैदा कर रही हैं।

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