बंगाल की खाड़ी में आने वाले चक्रवात "रेमल" के विषय में विस्तृत जानकारी


बंगाल की खाड़ी में निम्न वायु दाब का क्षेत्र विकसित हो रहा है यहाँ समुद्री जल का तापमान लगभग 30 डिग्री सेंटिग्रेड के आस- पास रिकॉर्ड किया गया है अतः यहाँ उष्ण कटिबंधीय चक्रवातीय स्थिति बन रही है।

सामान्यतः उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के लिए 27 डिग्री सेंटिग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है उसकी तुलना में 3 डिग्री सेंटिग्रेड तापमान अधिक है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार 25 मई की सुबह तक पूर्वी मध्य बंगाल की खाड़ी में चक्रवात बनने की उम्मीद है।

ऐसे में आस-पास के क्षेत्रों में 60 -102 किलोमीटर/घंटे की गति से हवा चलने का अनुमान है।

इसका प्रभाव भारत के पश्चिम बंगाल, उत्तरी ओड़िशा, मिजोरम, त्रिपुरा, दक्षिण मिजोरम समेत बांग्लादेश के तटीय इलाकों में रहेगा।

IMD के अनुसार 26 से 27 मई तक इन क्षेत्रों में भारी वर्षा होगी।

IMD की मानें तो इस चक्रवात से मानसून जल्दी आने की संभावना है।

परीक्षोपयोगी तथ्य

✅ चक्रवात (cyclone) का नाम :-  रेमल (Remal)
✅ रेमल (Remal) का अर्थ रेत है।
✅ यह एक अरबी शब्द है।
✅ यह नाम ओमान ने दिया है।
✅ यह एक उष्ण कटिबंधीय चक्रवात है।
✅ गत 30 वर्षों से महासागर के तापमान में वृद्धि हो रही हैं।
✅ अधिक तापमान होने से नमी में वृद्धि होती हैं।
✅ गत वर्ष विपरजॉय (Biparjoy) चक्रवात आया था जिसके नामकरण का सुझाव बांग्लादेश ने दिया था।
✅ विपरजॉय (Biparjoy) एक बंगाली शब्द है जिसका अर्थ होता है - "आपदा"


उष्ण कटिबंधीय चक्रवात

(1). ये चक्रवात उष्ण कटिबंध में 5° से 30° अक्षांशों के बीच दोनों गोलार्द्धों में चलते हैं।

(2). भूमध्य रेखा पर कोरियालिस बल के अनुपस्थिति के कारण यहाँ चक्रवात उत्पन्न नही हो पाते हैं।

(3). 15° अक्षांश तक ये चक्रवात पूर्वी (सन्मार्गी) पवनों के साथ पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हैं। 15° से 30° अक्षांशों के बीच इनकी दिशा अनिश्चित रहती है। उसके बाद ये पछुआ पवनों के साथ पश्चिम से पूर्व दिशा में चलकर समाप्त हो जाते हैं।

(4). इनका औसत व्यास 640 किलोमीटर होता है।

(5). आकार छोटा होने के कारण इन चक्रवातों में दाब प्रवणता अधिक होती है।

(6). दाब प्रवणता अधिक होने के कारण वायु अधिक वेग से चलती है। सामान्यतः वायु की गति 100 से 200 कि.मी./घण्टा होती है। (हरिकेन की गति 120 कि.मी./घण्टे से अधिक,सुपर चक्रवात की गति 200 कि.मी./घण्टे से अधिक होती है)

(7). इनकी उत्पत्ति संवहनीय धाराओं के कारण अंतरा उष्ण कटिबंधीय अभिसरण( ITC) के साथ होता है।

(8). ये चक्रवात सागरों पर तेज चलते हैं परंतु स्थलों पर पहुँचते पहुँचते कमजोर हो जाते है और आंतरिक भागों में पहुँचने से पहले ही समाप्त हो जाते हैं।

(9). ये चक्रवात वर्ष के निश्चित समय मे ही आते हैं खासकर ग्रीष्म काल में ही उत्पन्न होते हैं।

(10). इनका निर्माण गर्मियों में उस समय होता है जब सागरीय सतह के तापमान 27℃ होता है।

(11). इनमें कोई वाताग्र नहीं होता है।

(12). इनके केन्द्र से चारों ओर दूरी के साथ तापमान एक समान घटता है।

(13). पवनें चक्राकार मार्ग में गति करती हैं।

(14). इसमे वायु संचरण की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के प्रतिकूल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अनुकूल दिशा में होती है।

(15). इनमें वर्षा बहुत तीव्र गति से होती है और प्रत्येक भाग में होती है।

(16). इसमे वर्षा कुछ घण्टों से अधिक नहीं होती।

(17). इसमे वर्षा के साथ हिमवृष्टि तथा ओलावृष्टि नहीं होती है।

(18). इन चक्रवातों को ऊर्जा संघनन की गुप्त ऊष्मा से प्राप्त होती है।

(19). अपनी प्रचंड गति और तूफानी स्वभाव के कारण ये बहुत ही विनाशकारी होते हैं।

(20. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के केंद्र में (चक्षु पर) वायु शांत हो जाती है और वर्षा रूक जाती है।

(21). इनके आगमन के पहले वायु मंद पड़ जाती है और शीघ्र ही तापमान बढ़ने लगता है,आकाश में पक्षाभ बादल दिखाई देने लगते हैं।


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