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क्यों कहा जाता है नॉर्वे को मध्यरात्रि का देश

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अर्द्धरात्रि/मध्यरात्रि का सूर्य (Midnight Sun) जब 21 मार्च तथा 23 सितम्बर को सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत् चमकता है तब दोनों गोलार्द्धों में सभी अक्षांशों पर दिन व रात बराबर होता है।  किन्तु 21 जून को सूर्य जब कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है तब 23 अंश उत्तरी अक्षांश वृत्त का अधिकांश भाग प्रकाश प्राप्त करता है जिससे वहाँ 21 जून को दिन लम्बा (14 घंटे के लगभग) तथा रात छोटी होती है। इसके विपरीत 21 जून को मकर रेखा पर रात बड़ी तथा दिन छोटा होता है। इस प्रकार 21 जून की स्थिति में उत्तर जाने पर दिन की अवधि प्रत्येक अक्षांश पर उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। यह अवधि आर्कटिक वृत्त पर तथा उसके उत्तर स्थित सभी स्थानों पर 24 घंटे की होती है। इसीलिए समूचा आर्कटिक वृत्त प्रकाश-वृत्त (Light Circle) में रहता है। इसके फलस्वरूप नार्वे में मध्यरात्रि/अर्द्धरात्रि को भी सूर्य दिखता है।  स्मरणीय है कि आर्कटिक वृत्त पर सर्वप्रथम नार्वे में नार्वजियन सभ्यता का विकास हुआ जिससे भौगोलिक कहावत प्रचलित हो गई है कि नार्वे में अर्द्धरात्रि को सूर्य दिखता है। इसी लिये नॉर्वे को अर्द्धरा

परीक्षोपयोगी महत्वपूर्ण उद्योग व नगर।

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सभी तरह के प्रतियोगी परीक्षाओं में सामान्य अध्ययन के पेपर में उद्योगों व उनकी स्थिति आदि के विषय मे हमेशा प्रश्न पूछे जाते हैं। जिसको ध्यान में रखकर महत्वपूर्ण उद्योगों व उससे जुड़ी जानकारियां नीचे दी जा रहीं है। विश्व के प्रमुख उद्योग व उनकी स्थिति अहमदाबाद  - सूती वस्त्र उद्योग। अनशान (चीन) - लोहा एवं इस्पात उद्योग। वेलफास्ट (आयरलैंड) - जहाज निर्माण (Ship building)। बर्मिंघम (संयुक्त राज्य अमेरिका) - लोहा एवं इस्पात। काडीज (स्पेन) – कॉर्क (Cork)। चेलियाबिंस्क (रूस) - लोहा एवं इस्पात तथा मांस उद्योग। चांग चुन (Chang Chun) -   ऑटोमोबाइल एवं मशीन टूल्स। शिकागो (USA) - लोहा एवं इस्पात तथा मांस उद्योग। ढाका (बांग्लादेश) - कालीन उद्योग। दार्जिलिंग (भारत) - चाय परिष्करण (Tea processing) डेट्रायट (संयुक्त राज्य अमेरिका) - ऑटोमोबाइल। डन्डी (स्कॉटलैंड) - पहला जूट मिल, सूती वस्त्र। भारत में Rishra ड्रेस्डेन (जर्मनी) – ऑप्टिकल एवं फोटोग्राफिक उपकरण। ब्यूनर्स-आयर्स (अर्जेंटीना) - डेरी उद्योग। डलेसडार्फ (जर्मनी) - लोहा इस्पात एवं इंजीनियरिंग उद्योग। एसेन (जर्मनी) -

क्या होता है चुम्बकीय भूमध्य रेखा (Magnetic Equator)

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चुम्बकीय भूमध्यरेखा  (Magnetic Equator) यह रेखा पृथ्वी को दो गोलार्द्धों में विभाजित करती है जिसका प्लेन पृथ्वी के चुम्बकीय अक्ष को 90° पर दो बराबर भागों   में विभाजित करता है।  यह पृथ्वी की भौगोलिक भूमध्यरेखा को दो बिन्दुओं पर काटती है। पृथ्वी की चुम्बकीय भूमध्यरेखा का  वैज्ञानिक महत्व है।  यहीं से भूस्थैतिक कक्षा वाले भू-उपग्रह (Geo-stationary orbit) छोड़े जाते हैं। कारण, इस पर पृथ्वी  का गुरुत्वाकर्षण कम लगता है।  भारत का थुम्बा, श्रीहरिकोटा तथा चाँदीपुर इसी के पास स्थित हैं। इस वेबसाइट पर भूगोल के तथ्यों के साथ- साथ अब राज्य व केंद्र सरकार के अधीन सरकारी नौकरियों के भर्ती के विज्ञापन व तैयारी की रणनीति आदि के विषय मे भी जानकारियां आपको मिलती रहेगी। आप सभी इस वेबसाइट पर प्रतिदिन अपडेट किये जाने वाले तथ्यों को नोट करते चलें और साथ साथ नोट्स बनाते चलें जिससे आपके पास नोट्स में तथ्य एकत्रित हो जाएगा जो आगे की परीक्षाओं में काम आएगा। हमेशा नए तथ्य इस वेबसाइट पर आपको मिलते रहेंगे हमेशा इस वेबसाइट को देखते रहें।  और अपने मित्रों  ,सम्बन्धियों को भी इसके बार

जानिए क्या होता है इकोलॉजिकल फुटप्रिंट

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इकोलॉजिकल फुटप्रिंट क्या है? इकोलॉजिकल फुटप्रिंट शब्द अर्थात् पारिस्थितिक पद चिन्ह का सृजन कनाडा के पर्यावरणविद ब्रिटिश कोलम्बिया विश्वविद्यालय के विलियम रीस (William Rees) तथा मैथिआस वाकेरनैगेल (Mathias Wackernagel) ने किया था।  उनकी कार्यविधि यह मापन करती है कि मानव ने पृथ्वी की कितनी वहन क्षमता (Carrying Capacity) का  उपभोग कर लिया है।  यह परिभाषित करती है भूमि की उस मात्रा को जो किसी नगर को भोजन तथा प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति पहुंचाने के लिए और साथ ही उससे निकलने वाले कार्बन का अवशोषण कर सकने वाली वनस्पति को उगाने के लिए चाहिए। इकोलॉजिकल फुटप्रिंट के विभिन्न परिकलन, किसी निर्दिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में भोजन वन उत्पादों तथा ईंधन के औसतन प्रति व्यक्ति उपभोग पर आधारित होते हैं। फुटप्रिंट (पदचिन्ह) कितना बड़ा होगा एक परिकलन द्वारा निर्धारित होता है कि उतना भोजन लकड़ी और कागज का उत्पादन करने एवं तेल अथवा गैस की जगह इथेनॉल का प्रतिस्थान करने हेतु उनके तुल्य उगाने के लिए कितनी भूमि आवश्यक है। इस वेबसाइट पर भूगोल के तथ्यों के साथ- साथ अब राज्य व क

विश्व ओजोन दिवस परीक्षोपयोगी तथ्य।

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विश्व ओजोन संरक्षण दिवस 16 सितंबर के दिन लोगों को ओजोन परत के संरक्षण हेतु जागरूक करने के उद्देश्य से विश्व ओजोन संरक्षण दिवस मनाया जाता है। इसे पहली बार  “ वातावरण की रक्षा ”  नामक थीम के साथ मनाया गया था। विश्व ओजोन संरक्षण दिवस का इतिहास वैज्ञानिकों ने साल 1970 के अंत में ओजोन परत में छेद होने का दावा किया था। इसके बाद 80 के दशक में दुनियाभर की कई सरकारों ने इस समस्या को लेकर चिंतन करना शुरू कर दिया। साल 1985 में ओजोन लेयर की रक्षा के लिए वियना कन्वेंशन को अपनाया। इसके बाद 19 दिसंबर 1994 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 16 सितंबर की तारीख को अंतरराष्ट्रीय ओजोन डे मनाने का फैसला किया। साल 1995 में पहला वर्ल्ड ओजोन डे मनाया गया पृथ्वी की ओजोन परत के क्षय का सबसे पहले पता लगाने वाले अमरीकी वैज्ञानिक प्रो. शेरवुड रोलेंड का  10-मार्च 2012 को निधन हो गया। उन्होंने ही सबसे पहले बताया था कि मानव निर्मित रसायनों के कारण ओजोन की परत को भीषण नुकसान हो रहा है। प्रो. शेरवुड रोलेंड को इस बात का श्रेय भी जाता है कि उनकी खोज के कारण ही क्लोरोफ्लोरोकार्बन जैसी हानिकारक रसायन पर प्रतिब

परीक्षा में कहवा (Coffee) से पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण प्रश्न।

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● कहवा (Coffee) कहवा या कॉफी एक उष्णकटिबंधीय रोपण फसल है। यह एक हरी झाड़ी का बीज है। इसके बीजों को भूनकर पीसा जाता है तथा एक पेय के रूप में प्रयोग किया जाता है। कहवा का उत्पत्ति स्थल इथियोपिया के केल्फा प्रदेश (अबीसीनिया का पठार) को माना जाता है।  इसकी कृषि अधिक आर्द्रता, ढलानदार भूमि तथा 15 से 28°C तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक होती है। कहवा की तीन मुख्य किस्में हैं— (1) कॉफिया अरेबिका (2) कॉफिया रोबेस्टा (3) कॉफिया लाइबेरिका  इसमें सबसे उच्चकोटि का कहवा अरेबिका होता है। ब्राजील में रियो- डि-जेनेरियो का पृष्ठ प्रदेश, कोलम्बिया तथा इंडोनेशिया के जावा द्वीप में इसे उगाने की आदर्श भौगोलिक दशाएँ पायी जाती है। जमैका का ब्लू माउंटेन विश्व में सर्वोच्च कोटि का कहवा उत्पादक क्षेत्र है। भारत द्वारा अधिकांशतः उत्तम किस्म की अरेबिका कॉफी का उत्पादन किया जाता है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग है।  परन्तु भारत में विश्व की केवल 4.3 प्रतिशत कॉफी का उत्पादन होता है। कॉफ़ी उत्पादन में ब्राजील, वियतनाम, कोलंबिया, इंडोनेशिया, इथियोपिया और होंडुरास के पश्चात भार

विश्व के प्रमुख जनजातियों से सम्बंधित परीक्षोपयोगी तथ्य।

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विश्व की प्रमुख जनजातियां व उनसे सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य।   मरूस्थलीय क्षेत्र की कठिन परिस्थितियों के बावजूद, वहाँ विभिन्न अधिवासित समूह निवास करते हैं। वे जल, भोजन और  आजीविका के अन्य साधनों की कमी के कारण पर्यावरण के विरुद्ध संघर्ष करते हैं।  मिस्रवासियों जैसे कुछ निवासियों ने उच्च स्तर  की सभ्यता का विकास किया, जबकि बद्दू (बेदुइन) अरब जैसे अन्य निवासियों ने भेड़, बकरियों, ऊंटों और घोड़ों के अपने पशु समूह के साथ घुमंतू जीवन यापन किया। कालाहारी के बुशमैन और ऑस्ट्रेलिया के बिन्दीबू जनजातीय समुदाय इतने आदिम ढंग से जीवन यापन करते हैं कि कठिनाई से  ही उनका अस्तित्व बचा हुआ है। बुशमैन और बिन्दीवू दोनों जनजातियां घुमन्तू पशुचारक और खाद्य संग्राहक हैं जो कृषि कार्य और पशुपालन नहीं करते हैं। बुशमैन अपने धनुष और जहरीले तीरों, भालों, जाल और फन्दों के साथ  शिकार  करते हैं। कालाहारी मरूस्थल में घुमन्तू रूप से जीवन यापन  करते हैं।  वे न केवल कुशल और मजबूत होते हैं, बल्कि अत्यधिक सहनशील भी होते हैं। अपने शिकार को पकड़ने के लिए उन्हें  बहुत धैर्य रखना होत