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जानिये भूगोल के लिये कैसी हो आपकी रणनीति।

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भूगोल पर कैसी होनी चाहिए हमारी रणनीति अगर इस मुद्दे पर बात करें तो सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि भूगोल कॉन्सेप्ट आधारित विषय है। यह रटने का विषय नही है बल्कि पढ़कर समझने व तर्क करने वाला विषय है। सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले छात्रों के लिये यह रुचिकर विषय भी है। हम कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में भूगोल विषय से सम्बंधित पहलुओं का अध्ययन करते हैं। पर यह विषय सिविल सेवा से जुड़े अभ्यर्थियों के लिये कितना अहम है हम इस विषय मे विस्तृत चर्चा करेंगे। तो आइए जानते है कि हमे भूगोल विषय को तैयार करने के लिए किस प्रकार से रणनीति बना कर कार्य करना चाहिए। भूगोल की तैयारी कैसे करें? हाल के वर्षों में सिविल सेवा की परीक्षा हेतु उपलब्ध विभिन्न वैकल्पिक विषयों के पाठ्यक्रमों में अत्यधिक बदलाव हुए हैं एवं इस बदलाव के पश्चात ‘भूगोल’ विषय की लोकप्रियता एक वैकल्पिक विषय के रूप में काफी तेजी से बढ़ी है।  पिछले कुछ वर्षों के सफल प्रत्याशियों के वैकल्पिक विषयों के सर्वेक्षण से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस विषय की लोकप्रियता का एक सबसे महत्वपूर्ण कारण इसका संकल्पना आधारित होना है।  ए

पृथ्वी के बारे में ये बातें आप नही जानते होंगे।

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पृथ्वी  पृथ्वी पूरे ब्रह्मांड में एक मात्र एक ऐसी ज्ञात जगह है जहां जीवन का अस्तित्व है।  पृथ्वी की आकृति लध्वक्ष गोलाभ के समान है। यह लगभग नारंगी के आकार की है जो ध्रुवों पर थोड़ा चपटी है। इस ग्रह का निर्माण लगभग 4.6 अरब वर्ष पहले हुआ था और इस घटना के 1 अरब वर्ष पश्चात यहां जीवन का विकास शुरू हो गया था।  तब से पृथ्वी के जैवमंडल ने यहां के वायु मण्डल में काफी परिवर्तन किया है।  समय बीतने के साथ ओजोन परत बनी जिसने पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के साथ मिलकर पृथ्वी पर आने वाले हानिकारक सौर विकरण को रोककर इसको रहने योग्य बनाया। सर्वप्रथम पृथ्वी के उत्पत्ति के सम्बंध में तर्कपूर्ण परिकल्पना का प्रतिपादन फ्रांसीसी वैज्ञानिक कास्ते द बफन ने 1749 में किया। उसके बाद अनेक विद्वानों ने पृथ्वी के उत्पत्ति से सम्बंधित अपनी संकल्पनाएं दी। जैसे:- (1) कांट की वायव्य राशि परिकल्पना (2) लाप्लास की निहारिका परिकल्पना (3) चैम्बरलिन की ग्रहाणु परिकल्पना ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी सौर-नीहारिका (nebula) के अवशेषों से अन्य ग्रहों के साथ ही बनी।  निर्माण के बाद पृथ्वी गर्म होनी शुरू हुई।

हमे भूगोल क्यों और कैसे पढ़ना चाहिए?

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हमें भूगोल क्यों पढ़ना चाहिए? भूगोल को सभी विज्ञानों की जननी कहा जाता है। भूगोल जलवायु,मौसम,वर्षा, एवं भौगोलिक विशेषताओं को भलीभाँति समझने में मदद करता है। और मानव आदि काल से जिज्ञासु रहा है। ब्रह्मांड में, ग्रह के रूप में पृथ्वी को समझने में भूगोल मदद पहुँचाता है। भूमंडल पर अपने क्षेत्र अथवा देश की स्थिति की जानकारी भूगोल ही देता है, साथ ही यह विश्व के अन्य देशों से संबंध स्थापित करने में भी सहायक है।  इसका अध्ययन अंतरराष्ट्रीय भावना को जन्म देता है। मानव का पर्यावरण से घना संबंध है और भूगोल में पर्यावरणीय अध्ययन पर जोर दिया जाता है, अतः इन दिनों यह बड़ा ही महत्वपूर्ण विषय बन गया है। भूगोल का अध्ययन प्राकृतिक पर्यावरण और मानवीय क्रियाओं के संबंध में जानकारी देता है, साथ ही मानव की प्राकृतिक पर्यावरण के साथ हुई प्रतिक्रियाओं की विभिन्नताओं का स्पष्टीकरण करता है। वर्तमान युग में विश्व का प्रत्येक क्षेत्र किसी-न-किसी राजनीतिक इकाई से संबद्ध है और वह राजनीतिक इकाई पूरी तरह भौगोलिक वातावरण पर निर्भर है। उसका (राज्य/राष्ट्र का) जीवन, अंतरराष्ट्रीय संबंध या शक्तिसंपन्

क्या आप जानते हैं कि हिमालय की उत्पत्ति कैसे हुई?

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कैसे हुई हिमालय की उत्पत्ति हिमालय विश्व के जटिल पर्वतक्रम को प्रदर्शित करता है। हिमालय का निर्माण एक लंबे भू-गर्भिक ऐतिहासिक काल से गुजर कर सम्पन्न हुआ है। हिमालय पर्वत की उत्पत्ति टर्शियरी काल मे हुई। हिमालय विश्व के नवीन तथा सबसे ऊंचे मोड़दार पर्वत क्रम को प्रदर्शित करता है। इसमे कैम्ब्रियन से लेकर इयोसीन काल तक की विविध प्रकार की शिलाओं यानी चट्टानों के जमाव पाए जाते हैं जिनमे ग्रेनाइट, नाइस, बलुआ पत्थर, चुना पत्थर, गोलाश्म,शेल आदि प्रमुख हैं। कई स्थानों पर ये चट्टाने काफी कायान्तरित हो गई हैं। अत्यधिक वलन से इनमें श्यान वलन,प्रतिवलन एवं ग्रीवाखण्ड का निर्माण देखा जाता है। इसकी जटिलता के कारण ही विद्वानों ने हिमालय की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न प्रकार के विचार प्रस्तुत किये हैं। इसमे कोबर का भू सन्नति/भू -अभिनति सिद्धान्त तथा हैरी हैस/मॉर्गन का प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त सर्वाधिक मान्य सिद्धान्त है। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त इस सिद्धांत के अनुसार हिमालय का उत्थान इंडियन प्लेट के यूरेशियन प्लेट के टकराव का परिणाम माना जाता है। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार लगभग