क्या आप जानते हैं कि हिमालय की उत्पत्ति कैसे हुई?


कैसे हुई हिमालय की उत्पत्ति

हिमालय विश्व के जटिल पर्वतक्रम को प्रदर्शित करता है।
हिमालय का निर्माण एक लंबे भू-गर्भिक ऐतिहासिक काल से गुजर कर सम्पन्न हुआ है।

हिमालय पर्वत की उत्पत्ति टर्शियरी काल मे हुई। हिमालय विश्व के नवीन तथा सबसे ऊंचे मोड़दार पर्वत क्रम को प्रदर्शित करता है।

इसमे कैम्ब्रियन से लेकर इयोसीन काल तक की विविध प्रकार की शिलाओं यानी चट्टानों के जमाव पाए जाते हैं जिनमे ग्रेनाइट, नाइस, बलुआ पत्थर, चुना पत्थर, गोलाश्म,शेल आदि प्रमुख हैं।

कई स्थानों पर ये चट्टाने काफी कायान्तरित हो गई हैं।
अत्यधिक वलन से इनमें श्यान वलन,प्रतिवलन एवं ग्रीवाखण्ड का निर्माण देखा जाता है।

इसकी जटिलता के कारण ही विद्वानों ने हिमालय की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न प्रकार के विचार प्रस्तुत किये हैं।

इसमे कोबर का भू सन्नति/भू -अभिनति सिद्धान्त तथा हैरी हैस/मॉर्गन का प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त सर्वाधिक मान्य सिद्धान्त है।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त

इस सिद्धांत के अनुसार हिमालय का उत्थान इंडियन प्लेट के यूरेशियन प्लेट के टकराव का परिणाम माना जाता है।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार लगभग 7 करोड़ वर्ष पूर्व उत्तर में स्थित यूरेशियन प्लेट की ओर इंडियन प्लेट उत्तर पूर्वी दिशा में गतिशील हुआ।

2 से 3 करोड़ वर्ष पूर्व ये भू-भाग अत्यधिक निकट आ गए जिनसे टेथिस के अवसादों में वलन पड़ने लगा एवं हिमालय का उत्थान प्रारम्भ हो गया।

लगभग 1 करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय की सभी श्रृंखलाएँ आकार ले चुकी थी।

सेनोजोइक महाकल्प के इयोसीन व ओलिगोसीन कल्प में वृहद हिमालय का निर्माण हुआ।

मायोसीन कल्प में पोटवार क्षेत्र के अवसादों के वलन से लघु हिमालय का निर्माण हुआ।

और शिवालिक का निर्माण इन दोनों श्रेणियों के द्वारा लाये गए अवसादों के वलन से प्लायोसिन कल्प में हुआ।

क्वार्टनरी अर्थात नियोजोइक महाकल्प के प्लीस्टोसीन व होलोसीन कल्प में इसका निर्माण होता रहा है।

हिमालय पर्वत वास्तव में अभी भी एक युवा पर्वत है जिसका निर्माण कार्य अभी समाप्त नही हुआ है।

भू-सन्नति/भू-अभिनति सिद्धान्त

इस सिद्धांत के अनुसार प्राचीन काल मे जहाँ आज हिमालय है वहाँ एक विस्तृत भू-अभिनति सागर स्थित था जिसके उत्तर में अंगारालैंड और दक्षिण में गोंडवानालैंड के भू खण्ड अवस्थित थे। 

इयोसीन काल मे ये दोनों भू-खण्ड अभिसरित होने लगे जिससे टेथिस सागर के मलवे के उत्तरी एवं दक्षिणी किनारों पर मोड़ पैदा हो गए एवं क्रमशः उत्तर में कुनलुन और दक्षिण में हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ।

एडवर्ड स्वेस का मानना है कि हिमालय के वलन हेतु उत्तरदायी संपीडक बलों के कार्य करने की दिशा उत्तर से रही है जिससे टेथिस में संग्रहित मलवा का वलन हो सका।

हिमालय से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण परीक्षोपयोगी तथ्य।

(1) भारत की जलवायु को निर्धारित करने में हिमालय का बड़ा रोल है। जैसे ग्रीष्मकाल में हिमालय दक्षिणी पश्चिमी जलवाष्प युक्त मानसूनी हवाओ को रोककर देश मे पर्याप्त वर्षा कराता है।

जबकि यह शीतकाल में साइबेरिया की ठंडी हवाओं को रोककर देश को अपेक्षाकृत गर्म रखता है।

(2) हिमालय से पेय,सिंचाई, एवं औधोगिक उद्देश्यों के लिये मीठे जल की सतत वाहिनी नदियां निकलती है।

(3) हिमालय पर्वत पर शंक्वाकार वन तथा उनसे औधोगिक मुलायम लकड़ी की प्राप्ति होती है।

(4) हिमालय क्षेत्र में पशुचारण के लिये शीतोष्ण मुलायम घास के मैदान पाए जाते हैं जिसे जम्मू कश्मीर में मर्ग और उत्तराखंड में पयार या बुग्याल कहते हैं।

(5) हिमालय क्षेत्र को जैव विविधता का विशाल भंडार भी कहा जाता है। 

(6) हिमालय में ही विश्व की सर्वोच्च पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट स्थित है।

(7) 9 सितंबर को हिमालय दिवस के रूप में मनाया जाता है उत्तराखंड सरकार ने हिमालय दिवस को मनाने के लिये 2014 में इसकी घोषणा की थी।

(8) हिमालय विश्व का नवीन तथा सबसे ऊंचा मोड़दार पर्वत है।

(9) हिमालय में एल्पीय एल्पाइन ज़ोन 3200 मीटर एवं 3600 मीटर के मध्य से प्रारंभ होकर 4500 मीटर की ऊंचाई तक पाई जाती है।

(10) हिमालयी भ्रंशों का उत्तर से दक्षिण की ओर सही क्रम है- 

THF (ट्रांस हिमालयी भ्रंश)
               ⬇️
NHT (उत्तरी हिमालयी भ्रंश)
               ⬇️
MCT (मुख्य केंद्रीय भ्रंश)
               ⬇️
MBT (मुख्य सीमा भ्रंश)
               ⬇️
HFT(हिमालयी अग्र भ्रंश)


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अमित कुमार शुक्ल
Blogger/C.S./G.A.S./Geography
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