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राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य जीव अभ्यारण्य से पूछे जाने वाले प्रश्नों का आसानी से उत्तर दे पाएंगे।

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       राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य जीव अभ्यारण्य:- बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान               बांधवगढ़ [मध्यप्रदेश] कान्हा किस्ली राष्ट्रीय उद्यान          मंडला एवं बालाघाट                                                [मध्यप्रदेश] इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान              बस्तर [छत्तीसगढ़] फॉसिल राष्ट्रीय उद्यान             भोपाल [मध्यप्रदेश] पन्ना राष्ट्रीय उद्यान                 पन्ना [मध्यप्रदेश] संजय राष्ट्रीय उद्यान                सीधी एवं सरगुजा [म०प्र० एवं छत्तीसगढ़] सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान            होसंगाबाद [मध्यप्रदेश] सिंचौली वन्य जीव अभ्यारण्य         रायसेन [मध्यप्रदेश] रातापानी वन्य जीव अभ्यारण्य       रायसेन [मध्यप्रदेश] सीतानदी वन्य जीव अभ्यारण्य        रायपुर [छ०ग०] उदयन्ति वन्य जीव अभ्यारण्य          रायपुर [छ०ग०] भैरवगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य         बस्तर [छत्तीसगढ़] पुष्पावती राष्ट्रीय उद्यान             चमोली गड़वाल [उतरा०] कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान               नैनीताल [उत्तराखंड] दुधवा राष्ट

सामयिक पवन के बारे में क्या आप यह जानते हैं?

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सामयिक पवन मौसम या समय के परिवर्तन के साथ जिन पवनो की दिशा बिल्कुल उलट जाती है। उन्हें सामयिक पवन कहा जाता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित पवनो को रखा जाता है:- (1) मानसूनी पवन   मानसून एक प्रकार से बड़े पैमाने पर भू मंडलीय पवन तंत्र का रूपांतरण है। सूर्य के उत्तरायण होने पर उत्तरी गोलार्द्ध में उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्ध एवं तापीय विषुवत रेखा (सर्वाधिक तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा तापीय विषुवत रेखा कहलाती है) कुछ उत्तर की ओर खिसक जाती है। एशिया में स्थलखण्ड के प्रभाव के कारण यह खिसकाव अधिक होता है। इसके फलस्वरूप विषुवतीय पछुवा पवन भी उत्तर की ओर खिसक जाता है। सूर्य के दक्षिणायन होने पर उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्ध एवं तापीय विषुवत रेखा दक्षिण की ओर वापस लौट जाते है पुनः उ०पू० व्यापारिक पवनें चलने लगती हैं, यही शीतकालीन या उ०पू० मानसून है। (2) स्थल समीर एवं समुद्र समीर स्थल समीर एवं समुद्री समीर समुद्रतटीय क्षेत्रो में एक पतली पट्टी को ही प्रभावित करते हैं। दिन के समय निकटवर्ती समुद्र की अपेक्षा स्थलखण्ड अधिक गर्म हो जाता है एवं वहाँ निम्न वायुदाब विकसित ह

पवन/हवाओं से आने वाले एक भी प्रश्न अब नही छूटेंगे।

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पवन पवन पृथ्वी के धरातल पर वायुदाब की विषमताओं के कारण हवा उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर प्रवाहित होती है। क्षैतिज रूप से गतिशील इस हवा को ही पवन कहा जाता है। पृथ्वी के घूर्णन के कारण अपकेंद्रीय बल की उत्पत्ति होती है एवं पवन की दिशा फेरेल नियम , वाइज वैलेट नियम, एवं हेडली नियम द्वारा होती है। फेरेल नियम के अनुसार उत्तरी गोलार्द्ध में पवन दाहिनी ओर एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती है। ऐसा विषुवत रेखा पर घूर्णन की गति तेज एवं ध्रुवों पर धीमा होने के कारण होता है। वाइज वैलेट के नियम के अनुसार यदि उत्तरी गोलार्द्ध में पीठ की ओर से पवन चल रही हो तो उच्च वायुदाब दाहिनी ओर एवं निम्न वायुदाब बायीं ओर होता है। जब वायु दाब प्रवणता बल एवं विक्षेपण बल में संतुलन स्थापित हो जाता है- तब पवन का प्रवाह समदाब रेखाओं के समानांतर हो जाता है। इस प्रकार समदाब रेखाओं के समानांतर गतिशील वायु को भू विक्षेपी पवन कहा जाता है। भू विक्षेपी पवन अपने आदर्श रूप में वायुमंडल के ऊपरी भागों में ही पाया जाता है, क्योकि वहाँ घर्षण का प्रभाव नगण्य होता है एवं समदाब रेखाएं सीधी होती है।

वायुदाब पेटियों के बारे में सबसे सरल व सबसे महत्वपूर्ण जानकारी।

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वायुदाब की पेटियां:- यदि पृथ्वी स्थिर होती है , तो विषुवत रेखा के निकट निम्न वायुदाब एवं ध्रुवो के निकट उच्च वायुदाब की पेटियां मिलती है, परन्तु पृथ्वी के घूर्णन के कारण उपरोक्त दोनों पेटियों के अलावा दोनों ही गोलार्द्धों में वायुदाब की और दो - दो पेटियां पाई जाती है। इस प्रकार वायुदाब की कुल सात पेटियां ग्लोब पर देखने को मिलती है, जिन्हें दाब कटिबन्ध भी कहा जाता है। जल एवं स्थल के असमान वितरण के कारण वायुदाब की पेटियों में व्यवधान उत्पन्न हो जाता है। उत्तरी गोलार्द्ध में इन मेखलाओ के कई केंद्र होते हैं परन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध में ये मेखलाएँ अविच्छिन्न रूप में पाई जाती है। {1} विषुवतीय निम्न दाब पेटी:- इस पेटी का विस्तार विषुवत रेखा के दोनों ओर 5 अंश अक्षांशो तक मिलता है। परन्तु यह विस्तार स्थायी नही होता है, बल्कि सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायन होने के कारण इस पेटी का खिसकाव होता रहता है। विषुवत रेखा पर साल भर सूर्य की किरणें लगभग लम्बवत पड़ती है जिसके कारण साल भर तापमान ऊंचा रहता है। अधिक तापमान के कारण इस क्षेत्र की वायु गर्म होकर ऊपर उठती है जिससे निम्न भार

परीक्षा के लिये वलन और भ्रंशन के बारे में इतना ही पढ़ना काफी है।

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  बलन एवं भ्रंशन:- जब धरातल के स्पर्श रेखीय बलों के प्रभाव से अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र की चट्टानों पर दोनों तरफ से दबाव पड़ता है तो चट्टानों की परतें मुड़ जाती हैं एवं ऊपर उठ जाती हैं, फलस्वरूप पर्वत श्रेणी का निर्माण होता है। अतः क्षैतिज भू -संचलन को पर्वत निर्माणक भू-संचलन भी कहा जाता है। जब महाद्वीप का कोई भाग ,अपने आस पास की सतह से ऊँचा उठ जाता है तो उसे उत्थान (Uplifitment) कहा जाता है। परन्तु जब सागर का जलमग्न भाग सागर तल से ऊपर उठ जाता है ,तो उसे निर्गमन (Emergence) कहा जाता है। जब स्थलखण्ड का एक भाग अपने समीप के सतह से नीचे धंस जाता है, तो इस क्रिया को अवतलन (Subsidence) कहा जाता है। परन्तु जब स्थलखण्ड सागर तल के नीचे चला जाता है एवं जलमग्न हो जाता है तो इस क्रिया को निमज्जन (Submergence) कहा जाता है। निमज्जन की क्रिया स्थलखण्ड के नीचे धंसने या सागरतल के ऊपर उठने से हो सकती है। वलन (Folds):- क्षैतिज या स्पर्शरेखीय बलों के प्रभाव से चट्टानों में दबाव पड़ता है, फलस्वरूप चट्टानों में वलन की क्रिया होती है। वलन के फलस्वरूप शिखरों एवं द्रोणियों का निर्माण होता है