भूगोल में सर्वेक्षण का महत्व तथा परीक्षाओं में पूछे जाने वाले प्रश्न।


भूगोल में सर्वेक्षण

भूगोल एक क्षेत्रीय विज्ञान है जिसमे स्थानों की सापेक्षिक स्थिति , क्षेत्रो का परिमाप एवं उसका धरातलीय वर्णन और मानचित्रण में में महत्वपूर्ण स्थान है।

इसलिए भूगोल की मौलिक संकल्पनाओं में भौगोलिक अवस्थिति दूरी और मापन उल्लेखनीय है।

धरातलीय वर्णन में विभिन्न स्थानों की सापेक्षिक स्थिति ज्ञात करने पर ही सम्भव होता है।

इस सापेक्षिक स्थिति का निर्धारण दूरी ऊंचाई मापन पर निर्भर करता है।

सर्वेक्षण में हम यंत्रों व उनके प्रयोग की विधियों के अनुसार कार्य करते है।

इसलिए सर्वेक्षण धरातल पर विभिन्न स्थानों पर सापेक्षिक अवस्थिति निर्धारण की तकनीक है।

इसके अंतर्गत प्रायः तीन प्रकार के तथ्यों का निरीक्षण किया जाता है।

1 दूरी मापन
2 दिशा बोध
3 सापेक्षिक ऊंचाई का निर्धारण।


भौगोलिक तथ्यों की जानकारी उनका क्षेत्रीय विभेदीकरण मानव के आर्थिक व्यवहार का आधार है।

इसलिए विभिन्न यंत्रों व विधियों की सहायता से भौगोलिक तथ्यों की सापेक्षिक अवस्थिति का ज्ञान आवश्यक है।

सर्वेक्षण में तकनीकी विकास क्रम के साथ ही परम्परागत विधियों और आधुनिक तकनीकों हवाई छाया चित्रण दूर संवेदन आदि का प्रयोग करके धरातल पर या धरातल के ऊपर और अधोभौमिक स्तर पर विभिन्न तथ्यों की अवस्थिति निर्धारण का कार्य महत्वपूर्ण है।

इस लिये सामान्य सर्वेक्षण से लेकर आज जटिल सर्वेक्षण तंत्र विकसित किया गया है।

सामान्यतः किसी भी सर्वेक्षण में निम्न कार्य करना पड़ता है- 

1 निर्णय प्रक्रिया
2 क्षेत्रीय कार्य
3 उपलब्ध आकड़ो का विश्लेषण
4 मानचित्रण या आकड़ो का प्रदर्शन
5 व्यवहारिक उपयोग


मानवीय सभ्यता के विकास के साथ ही सर्वेक्षण का भी विकास प्रारम्भ हुआ क्योंकि विभिन्न मानव समूहों और उनके राजनीतिक क्षेत्र अथवा राज्य विकास के परिणाम स्वरुप धरातलीय विभाजन हेतु दूरी परिमाप आदि मापन विधियों का विकास हुआ।

सर्वेक्षण के प्रकार

सर्वेक्षण कई प्रकार का होता है विधियों ,यंत्रों और उद्देश्यों के अनुसार इसके कई प्रकार हैं।
जैसे

1 समतलन सर्वेक्षण

इसके अंतर्गत पृथ्वी की वक्रता का ध्यान नही रखा जाता है और सर्वेक्षण से सम्बंधित मापन दूरी और कोणों का निर्धारण समतल और क्षैतिज सतह के संदर्भ में किया जाता है।

सीमित क्षेत्र हेतु सर्वेक्षण में वक्रता का प्रभाव नगण्य रहता है।

5 मिल की लंबाई में वक्रता केवल 0.02 फीट रहती है।

2 भूपृष्ठीय सर्वेक्षण

धरातल पर विस्तृत क्षेत्र हेतु पृथ्वी की वक्रता को ध्यान में रख कर यह सर्वेक्षण किया जाता है।

3 हवाई छायाचित्रण सर्वेक्षण

इसमे धरातलीय सर्वेक्षण हवाई जहाज में लगे कैमरे से द्वारा किया जाता है।

4 रिमोट सेंसिंग या दूर संवेदन सर्वेक्षण

इसके अंतर्गत कृत्रिम उपग्रहों में लगे संवेदकों द्वारा सर्वेक्षण कार्य किया जाता है।



सर्वेक्षण की विधियां

किसी भी क्षेत्र के सर्वेक्षण की दो विधियां है।

1 त्रिभुजीकरण

इस विधि में जिस क्षेत्र का सर्वेक्षण करना होता है उसे त्रिभुजों में बांट लिया जाता है।

सर्वप्रथम क्षेत्र निरीक्षण करने के बाद उपर्युक्त रेखा का चयन किया जाता है।

क्योकि आधार रेखा के सहारे ही मापन क्रिया प्रारम्भ की जाती है।

इसलिये आधार रेखा ऐसी होनी चाहिए जिसका मापन आसानी से हो सके एवं दोनों बिंदु एक दूसरे की पहुंच के अंदर हों।

इसके पश्चात त्रिभुज के शीर्ष का चयन करते हैं।

त्रिभुज के तीनों शीर्ष एक दूसरे से गम्य या फिर दिखाई देने वाला होना चाहिए।

इसलिए प्रायः उच्च भू भागो पहाड़ की चोटियों को शीर्ष के रूप में लिया जाता है।

इन्ही शीर्षों को त्रिकोणमितिय स्टेशन कहते हैं।

त्रिभुजीकरण में केवल आधार रेखा का मापन करके अन्य शीर्षों की दूरी एवं ऊंचाई को यंत्रों की सहायता से नापते है।

2 मालारेखण

मालारेखण विधि भी एक आसान विधि है।

इसमे किसी भी बिंदु से सर्वेक्षण प्रारम्भ करके आधार रेखा व अन्य तथ्यों की दूरी व कोण का मापन करते जाते है।

यह विधि भी दो प्रकार की होती है।

१ खुला मालारेखण

२ बंद मालारेखण


सर्वेक्षण की प्रक्रिया

किसी भी सर्वेक्षण के अंतर्गत निम्नलिखित कार्य करते हैं

1 क्षेत्र निरीक्षण।

2 क्षेत्रीय रेखा चित्रण।

3 सर्वेक्षण रेखा, अवस्थानो का चयन व विधियों का निश्चयन।

4 यंत्रों का चयन व अभिस्थापन।

5 यंत्रों की सहायता से दूरियों कोणों और ऊंचाइयों का मापन।

6 प्राप्त सूचनाओं के आधार पर क्षेत्र पुस्तिका का निर्माण।

7 प्रयोगशाला सम्बन्धी कार्य मे क्षेत्र पुस्तिका के आधार पर मानचित्र का आरेखण विभिन्न अवस्थितियों का निर्धारण करके मानचित्र को पूर्ण करना।

जरीब और फीता का उपयोग क्यो आवश्यक होता है आइये जानते है इसके बारे में विस्तार से

A जरीब

जरीब दूरी मापने का प्रमुख उपकरण है। प्रायः हम लोग  कृषि क्षेत्र या सड़क ,नदियों आदि के मापन में इसका प्रयोग करते हुए लेखपाल या पटवारी के हाथ मे जरीब को देखते हैं।

यह लोहे की कड़ियों से बनी एक जंजीर होती है इसके दोनों सिरों पर पीतल के हत्थे लगे होते हैं।

प्रायः यह 100 कड़ियों में विभाजित रहती है।

जरीब की प्रत्येक कड़ी दूसरी से छल्ले द्वारा जुड़ी रहती है। इस छल्ले के मध्य बिंदु से कड़ी की दूरी निश्चित करते हैं।

कड़ियों की गणना हेतु प्रत्येक 10 कड़ी पर पीतल के टैग लगे रहते हैं।

प्रथम 10 कड़ी पर एक नोक वाला टैग दूसरी 10 पर दो नोक वाला, तीसरी 10 पर तीन नोक वाला, इसी तरह 50 पर गोल टैग रहता है।

पुनः 60 पर 4 नोक 70 पर 3 नोक आदि के क्रम में टैग रहते हैं।



जरीब के प्रकार

माप प्रणाली, लम्बाई तथा उपयोगिता के अनुसार जरीब 4 प्रकार की होती है।

1 गण्टर जरीब

इसे 17 वी शताब्दी के प्रारंभिक वर्षो में एडमंड गण्टर नामक खगोलज्ञ ने बनाया था।

यह जरीब 66 फिट अथवा 22 गज लम्बी होती है।

इसमे भी 100 कड़ियां होती हैं।

80 गण्टर जरीब = 1 मील या 1760 गज

10 जरीब = 1 फर्लांग या 220 गज

10 वर्ग गण्टर जरीब = 4840 वर्ग गज या 1 एकड़

2 इंजीनियरिंग जरीब

यह एक फीट लम्बी कड़ियों वाली 100 कड़ी या 100 फीट लम्बी जरीब है।

इसमे भी 10 कड़ियों पर एक टैग लगा रहता है।

3 मीट्रिक जरीब

यह जरीब भी 100 कड़ियों की विभिन्न लम्बाई की होती है।

इनकी लम्बाई सामान्यतया 30 मीटर अथवा 20 या 10 मीटर की रहती है।

30 मीटर वाली जरीब में एक कड़ी की लंबाई 30 सेमी और 20 मीटर वाली में 20 सेमी रहती है।

4 इस्पाती फीता जरीब

किसी नगर आदि के सर्वेक्षण में जहाँ अपेक्षाकृत अधिक शुद्धता की आवश्यकता होती है ऊपर लिखी गई सामान्य जरीबो के स्थान पर इस्पाती फीता जरीबो को प्रयोग में लाया जाता है।

यह जरीब इस्पात के फीते की बनी होती है।

B फीता

दूरी मापने के फीते भिन्न भिन्न लम्बाई वाले होते हैं परंतु सर्वेक्षण कार्य मे सामान्यतः 100 फीट या 30 मीटर लम्बाई वाले फीते अधिक प्रयोग किये जाते है।

फीते के एक सिरे पर पीतल का छल्ला लगा होता है।

तथा दूसरा सिरा चमड़ा आदि से निर्मित मजबूत खोल के भीतर एक छड़ से बंधा होता है।

निर्माण की सामग्री के आधार पर फीते निम्नलिखित 5 प्रकार के होते हैं।



फीते के प्रकार

1 सूती कपड़े या लिनन का फीता
2 धात्विक फीता

3 कृत्रिम रेशे या पालीथिन का फीता

4 इस्पाती फीता

5 इन्वार फीता

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 पं० अमित कुमार शुक्ल "गर्ग"

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