तौकते के बाद अब आने वाला है एक और चक्रवात यस (Yaas) जानिए इसके बारे में विस्तार से।


उष्णकटिबंधीय चक्रवात यस (Yaas)

चक्रवाती तूफान ताउते (Cyclone Tauktae) गुजरात और महाराष्ट्र में तबाही के मंजर की तस्वीरें छोड़ गया, वहीं भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने एक और चेतावनी जारी की है।

IMD के मुताबिक बंगाल की खाड़ी के उत्तर मध्य के ऊपर कम दबाव का क्षेत्र बन रहा है, जिसके चलते 23-24 मई को ये साइक्लोन में तब्दील हो सकता है।

आने वाले दिनों में अगर ये चक्रवाती तूफान बनता है तो इसे ‘यस’ (Yaas) चक्रवात के नाम से जाना जाएगा।

इस उष्णकटिबंधीय चक्रवात का नाम ओमान ने दिया है।

अगले सप्ताह बंगाल की खाड़ी के ऊपर कम दबाव का क्षेत्र बनने की चेतावनी जारी की गई है।

आईएमडी के अधिकारियों के मुताबिक ये दबाव का क्षेत्र बढ़कर चक्रवाती तूफान की शक्ल अख्तियार कर सकता है।


ओडिशा, अंडमान और पश्चिम बंगाल पर असर

इस चक्रवाती तूफान का असर अंडमान निकोबार द्वीप समूह, ओडिशा और पश्चिम बंगाल पर होगा।

IMD ने इस बात पर भी जोर दिया कि समुद्र की समतह का तापमान SST बंगाल की खाड़ी से 31 डिग्री ऊपर है, जो कि औसत तापमान से 1-2 डिग्री तक ऊपर है।

ये परिस्थितियां ऐसी हैं जो चक्रवाती तूफान के बनने के लिए अनुकूल हैं।


क्या है चक्रवात ?

चक्रवात तीव्र कम दबाव (लो प्रेशर) की प्रणाली हैं,जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में समुद्र या महासागरों के ऊपर विकसित होते हैं। 

इस प्रकार समुद्री तूफान को चक्रवात कहते हैं, इनमें हवा गोल घेरे में तेज़ी से घूमती है और अपने बीच आने वाली सभी चीजों को उड़ा ले जाती है। 

जब किसी थोड़े से क्षेत्र में तापमान बहुत बढ़ जाता है तो वायु का दबाव एकदम से गिर जाता है। 

वायु के दबाव को संतुलित करने के लिये इस क्षेत्र के केंद्र की हवा तेज़ी से बढ़ती है। 

तेज़ गति के कारण उस क्षेत्र में हवा की गति चक्रदार हो जाती है। 

इस प्रकार गर्म हवा तेज़ी से ऊपर उठने लगती है जिससे वह कीप के आकार के बादल जैसा रूप ले लेती है। 

दोनों गोलार्द्धों में आते हैं चक्रवात।

पृथ्वी के दोनों गोलार्द्धों- उत्तरी और दक्षिणी में चक्रवात आते हैं। 

ये चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा में (Counter-Clockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा (Clockwise)  में चलते हैं।

भारत में आते हैं उष्णकटिबंधीय चक्रवात 

भारत में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से ही अधिकांश तूफानों की उत्पत्ति होती है, जिन्हें उष्णकटिबंधीय चक्रवात कहा जाता है।

भारतीय उपमहाद्वीप के आस-पास उठने वाले तूफान घड़ी चलने की दिशा में आगे बढ़ते हैं।

उष्णकटिबंधीय चक्रवात कम दबाव प्रणाली हैं जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के समुद्र में महासागरों के ऊपर विकसित होते हैं। 

उष्णकटिबंधीय चक्रवात एक तूफान है जो विशाल निम्न दबाव केंद्र और भारी तड़ित-झंझावतों के साथ आता है।

और तीव्र हवाओं व घनघोर वर्षा की स्थिति उत्पन्न करता है। 
उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति तब होती है जब नम हवा के ऊपर उठने से गर्मी पैदा होती है, जिसके फलस्वरूप नम हवा में निहित जलवाष्प का संघनन होता है। 

ऐसे चक्रवात मुख्यतः 30° उत्तरी एवं 30° दक्षिणी (10°उत्तरी व 10° दक्षिणी को छोड़कर ) अक्षांशों के मध्य आते हैं क्योंकि इनकी उत्पत्ति हेतु उपरोक्त दशाएँ यहाँ मौजूद होती हैं। 

भूमध्य रेखा पर निम्न दाब के बावजूद नगण्य कोरिओलिस बल के कारण पवनें वृत्ताकार रूप में नहीं चलतीं, जिससे चक्रवात नहीं बनते। 

दोनों गोलार्द्धों में 30° अक्षांश के बाद ये पछुआ पवन के प्रभाव में स्थल पर पहुँचकर समाप्त हो जाती हैं।

उष्णकटिबंधीय चक्रवात की अनुकूल स्थितियां

1 वृहद् समुद्री सतह जहाँ तापमान 27°C से अधिक हो

2 कोरिओलिस बल का होना 

3 उर्ध्वाधर वायु कर्तन (Vertical Wind Shear) का क्षीण होना

4 समुद्री तल तंत्र का ऊपरी अपसरण 

आदि इनकी उत्पत्ति एवं विकास के लिये अनुकूल स्थितियाँ हैं।

चक्रवात की श्रेणियां

चक्रवातों को हवा की गति और क्षति के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

श्रेणी 1 चक्रवात: प्रति घंटे 90 से 125 किलोमीटर के बीच हवा की गति, घरों और पेड़ों को कुछ ध्यान देने योग्य नुकसान।

श्रेणी 2: प्रति घंटे 125 और 164 किलोमीटर के बीच हवा की गति, घरों को नुकसान और फसलों और पेड़ों को अत्यधिक नुकसान ।

श्रेणी 3: प्रति घंटे 165 से 224 किलोमीटर प्रति घंटा के बीच हवा की गति, घरों के लिए संरचनात्मक क्षति, फसलों को व्यापक क्षति और ऊँचे पेड़ों, ऊँचे वाहनों और इमारतों का विनाश।

श्रेणी 4: प्रति घंटे 225 और 279 किलोमीटर के बीच हवा की गति, बिजली की विफलता और शहरों और गाँवों को बहुत नुकसान।

श्रेणी 5: प्रति घंटे 280 किलोमीटर से अधिक की हवा की गति, व्यापक क्षति।

चक्रवात से आईएएस मेंस में कई बार प्रश्न पूछा गया है जिसमे से एक प्रश्न का उदाहरण नीचे दिया गया है।

प्रश्न:- क्या कारण है कि भारत का पूर्वी तट इसके पश्चिमी तट की अपेक्षा चक्रवात से अधिक प्रभावित रहता है? ऐसे चक्रवातों के जनन में हिन्द महासागर की तटीय संरचना की क्या भूमिका है?

उत्तर:-

भारत प्राकृतिक आपदाओं विशेषकर भूकंप, बाढ़, सूखा, चक्रवातों तथा भू-स्खलन के लिये सुभेद्य है। अध्ययन से पता चलता है कि प्राकृतिक आपदाओं से भारत तथा राज्य सरकार के कुल राजस्व के 12% तक की क्षति होती है।

यद्यपि भारत का संपूर्ण तटीय क्षेत्र उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से प्रभावित है, परंतु पश्चिमी तट की तुलना में पूर्वी तट अधिक सुभेद्य है। बंगाल की खाड़ी में अक्तूबर-नवंबर में विकसित कुल चक्रवातों का 58% पूर्वी तट को पार करता है तथा इसी काल में अरब सागर में विकसित चक्रवातों का 25% ही पश्चिमी तट को पार करता है।

इसके प्रमुख कारण हैं:-

सागरीय सतह का तापमानः-

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति के लिये 25°-27° डिग्री सेल्सियस  आदर्श तापमान है। 

यह तापमान आर्द्रता की सतत् आपूर्ति सुनिश्चित करता है तथा चक्रवात को पर्याप्त बल प्रदान करता है। 

चूँकि बंगाल की खाड़ी का औसत सागरीय सतह तापमान अरब सागर की अपेक्षा अधिक है, अतः चक्रवातों की उत्पत्ति अधिक होती है।

वायु अपप्रपण :-

वायु अपप्रपणता वायु की गति में परिवर्तन को कहते हैं। 

यह दो प्रकार का होता है,- क्षैतिज तथा ऊर्ध्वाधर। 

क्षैतिज वायु अपप्रपण अक्षांशों के साथ वायु की गति में परिवर्तन तथा ऊध्वार्धर ऊँचाई के साथ वायु की गति में परिवर्तन से संबंधित है। 

उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति के लिये ऊध्वार्धर पवनों की गति में अंतर कम होना चाहिये। 

यह अरब सागर की अपेक्षा बंगाल की खाड़ी के क्षेत्र में निम्न होता है।

क्षारताः- 

बंगाल की खाड़ी में अरब सागर की अपेक्षा अधिक नदियाँ अपना जल प्रदान करती हैं, जिसके कारण बंगाल की खाड़ी की क्षारता ,अरब सागर की क्षारता से कम है। 

अतः यहाँ वाष्पीकरण की दर तीव्र है जो कि उष्णकटिबंधीय चक्रवात के निर्माण में अहम भूमिका निभाती है।

दक्षिणी चीन सागर द्वारा अतिरिक्त आर्द्रता की आपूर्तिः दक्षिणी चीन सागर में उत्पन्न टाइफून बंगाल की खाड़ी में चक्रवातों को प्रभावित करता है, जबकि अरब सागर के संदर्भ में ऐसा नहीं है।

चक्रवातों की दिशाः- 

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, अरब सागर में उत्पन्न चक्रवातों की दिशा प्रायः उत्तर-पश्चिम होती है, क्योंकि वास्तव में वे भारत की मुख्य भूमि से दूर जा रहे होते हैं।

इन चक्रवातों की उत्पत्ति में हिंद महासागर की तटीय भागों में होती है।

संरचना की भूमिकाः-

बंगाल की खाड़ी अरब सागर के मुकाबले अधिक स्तरीकृत है। 

पूर्वी तट पर पश्चिमी घाट की तरह ऊँची तथा सतत् पर्वत श्रृंखला का अभाव है, अतः अवरोध की अनुपस्थिति में चक्रवात की उग्रता अधिक होती है। 

बंगाल की खाड़ी में लवणता की मात्रा कम होने के कारण सतह का जल आसानी से ऊपर उठ जाता है। 

पूर्वी अफ्रीका में पर्वतों की उपस्थिति के कारण अरब सागर में पवन की गति तेज होती है तथा सतह से प्राप्त ऊष्मा को यह शीघ्रता से दक्षिण की ओर गहरे समुद्र में पहुँचा देती है, जबकि बंगाल की खाड़ी के ऊपर पवन धीमी गति से चलती है और सतह से प्राप्त ऊष्मा को आसानी से हटा नहीं पाती है।

परंतु ऐसा नहीं है कि अरब सागर में चक्रवात की घटना होती ही नहीं है। 

वास्तव में जलवायु परिवर्तन के कारण चक्रवातों की बारंबारता अधिक अनिश्चित हो गई है तथा चक्रवातों से होने वाले नुकसान में भी वृद्धि हुई है।

फिर मिलेंगे अगले टॉपिक के साथ।
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अमित कुमार शुक्ल
Blogger/C.S./G.A.S./Geography
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)













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