उष्ण कटिबंधीय और शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में अंतर।


उष्ण कटिबंधीय चक्रवात और शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में अंतर:-

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात

(1). ये चक्रवात उष्ण कटिबंध में 5° से 30° अक्षांशों के बीच दोनों गोलार्द्धों में चलते हैं।

(2). भूमध्य रेखा पर कोरियालिस बल के अनुपस्थिति के कारण यहाँ चक्रवात उत्पन्न नही हो पाते हैं।

(3).15° अक्षांश तक ये चक्रवात पूर्वी (सन्मार्गी) पवनों के साथ पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हैं। 15° से 30° अक्षांशों के बीच इनकी दिशा अनिश्चित रहती है। उसके बाद ये पछुआ पवनों के साथ पश्चिम से पूर्व दिशा में चलकर समाप्त हो जाते हैं।

(4).  इनका औसत व्यास 640 किलोमीटर होता है।

(5).आकार छोटा होने के कारण इन चक्रवातों में दाब प्रवणता अधिक होती है।

(6). दाब प्रवणता अधिक होने के कारण वायु अधिक
वेग से चलती है। सामान्यतः वायु की गति 100 से 200 कि.मी./घण्टा होती है। (हरिकेन की गति 120 कि.मी./घण्टे से अधिक,सुपर चक्रवात की गति 200 कि.मी./घण्टे से अधिक होती है)

(7). इनकी उत्पत्ति संवहनीय धाराओं के कारण अंतरा उष्ण कटिबंधीय अभिसरण( ITC) के साथ होता है।

(8). ये चक्रवात सागरों पर तेज चलते हैं परंतु स्थलों पर पहुँचते पहुँचते कमजोर हो जाते है और आंतरिक भागों में पहुँचने से पहले ही समाप्त हो जाते हैं।

(9). ये चक्रवात वर्ष के निश्चित समय मे ही आते हैं खासकर ग्रीष्म काल में ही उत्पन्न होते हैं।

(10). इनका निर्माण गर्मियों में उस समय होता है जब सागरीय सतह के तापमान 27℃ होता है।

(11). इनमें कोई वाताग्र नहीं होता है।

(12). इनके केन्द्र से चारों ओर दूरी के साथ तापमान एक समान घटता है।

(13). पवनें चक्राकार मार्ग में गति करती हैं।

(14). इसमे वायु संचरण की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के प्रतिकूल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अनुकूल दिशा में होती है।

(15). इनमें वर्षा बहुत तीव्र गति से होती है और प्रत्येक भाग में होती है।

(16). इसमे वर्षा कुछ घण्टों से अधिक नहीं होती।

(17). इसमे वर्षा के साथ हिमवृष्टि तथा ओलावृष्टि नहीं होती है।

(18). इन चक्रवातों को ऊर्जा संघनन की गुप्त ऊष्मा से प्राप्त होती है।

(19). अपनी प्रचंड गति और तूफानी स्वभाव के कारण ये बहुत ही विनाशकारी होते हैं।

(20. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के केंद्र में (चक्षु पर) वायु शांत हो जाती है और वर्षा रूक जाती है।

(21). इनके आगमन के पहले वायु मंद पड़ जाती है और शीघ्र ही तापमान बढ़ने लगता है,आकाश में पक्षाभ बादल दिखाई देने लगते हैं।


शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात

(1). इनका आकार प्रायः गोलाकार,अंडाकार व वेज के आकार का होता है जिस कारण इन्हें गर्त या ट्रफ कहते हैं।

(2). ये चक्रवात शीतोष्ण कटिबंध में 35° से 65° अक्षांशों के बीच दोनों गोलार्द्धों में चलते हैं।

(3). ये निरंतर पछुवा पवनों के प्रभाव में आकर पश्चिम से पूर्व दिशा में चलते रहते हैं।

(4).इन्हें विक्षोभ या लहर चक्रवात के नाम से भी जाना जाता है।

(5). ये शीतकाल में उत्पन्न होते हैं।

(6). इनका निर्माण दो विपरीत स्वभाव वाली (ठंडी और गर्म आर्द्र) हवाओं के मिलने के कारण होता है।

(7). इनका आदर्श दीर्घ व्यास 1920 किलोमीटर तथा लघु व्यास 1040 किलोमीटर लम्बा होता है।

(8).आकार बड़ा होने के कारण इन चक्रवातों में दाब प्रवणता कम होती है।

(9). दाब प्रवणता कम होने के कारण वायु मंद वेग से चलती है। गर्मियों में इनकी औसत गति 32 कि.मी./घण्टा तथा सर्दियों में इनकी गति बढ़ कर 48 कि.मी. घण्टा हो जाती है।

(10). शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की वायुप्रणाली अभिसारी प्रकार की होती है।

(11). ये समुद्री तथा स्थलीय दोनों भागों पर समान रूप से उत्पन्न तथा विकसित होते हैं।

(12). इनमें उष्ण तथा शीत वाताग्र होते हैं।

(13). इसमे पवनों की गति एवं दिशा वाताग्रों पर निर्भर करती है।

(14).इनमें वर्षा तथा वायु दोनों की गति मंद होती है इसलिए  ये विनाशकारी नहीं होते हैं।

(15).इसमे वर्षा कई-कई दिनों तक होती रहती है।

(16). इसमे वर्षा के साथ- साथ प्रायः हिमवृष्टि तथा ओलावृष्टि भी होती है।

(17). ऊर्जा वायुराशियों के घनत्व के अंतर पर निर्भर करती है।

(18). इस चक्रवात के केंद्र में वर्षा तथा पवन नहीं रूकते।

(19). इनके उष्ण खण्ड में तापमान अधिक तथा शीत खण्ड में तापमान कम होता है।

(20).इसके केंद्र में निम्न वायुदाब होता है तथा बाहर की ओर दाब बढ़ता जाता है।


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 पं० अमित कुमार शुक्ल "गर्ग"

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