ज्वार भाटा
ज्वार भाटा
सूर्य और चंद्रमा की आकर्षक शक्तियों के कारण सागर जल के ऊपर उठने तथा नीचे गिरने की क्रिया को ज्वार भाटा कहते हैं।
जिसमे सागरीय जल के ऊपर उठ कर आगे बढ़ने को ज्वार तथा सागरीय जल को नीचे गिरकर पीछे लौटने (सागर की ओर) को भाटा कहा जाता है।
चन्द्रमा का ज्वार उत्पादक बल सूर्य की अपेक्षा दुगुना होता है ,क्योंकि यह सूर्य की तुलना में पृथ्वी के अधिक निकट है।
ज्वार का आगमन
सामान्यतया प्रत्येक स्थान पर दिन में दो बार ज्वार आता है ,लेकिन यह ज्वार नियमित रूप में एक ही समय पर नही आता।
इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पृथ्वी 24 घण्टे में अपना एक चक्कर पश्चिम से पूरब दिशा में पूरा करती है।
इसके साथ चन्द्रमा भी अपनी धुरी पर भ्रमण करते हुए पृथ्वी का चक्कर लगाता है।
चन्द्रमा पृथ्वी के नजदीक होने के कारण ज्वार की प्रक्रिया को अधिक प्रभावित करता है,परन्तु इसमे सूर्य की भी भूमिका रहती है।
लघु ज्वार
सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी एवं चन्द्रमा की स्थिति परिवर्तनशील होती है। कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की सप्तमी एवं अष्टमी को सूर्य ,पृथ्वी तथा चन्द्रमा लगभग समकोण की स्थिति में होते है ।
परिणामतः सूर्य तथा के आकर्षण बल विपरीत दिशा में काम करते हैं जिसके चलते औसत से न्यून ज्वार की स्थिति उत्पन्न होती है ,इसे न्यून ज्वार या लघु ज्वार कहा जाता है। जो औसत से 20% कम ऊँचा होता है।
नीचे दिये गये चित्रों चित्र संख्या 6 तथा 7 में पूर्णमासी एवं अमावस्या के दिन ज्वार की स्थिति को स्पष्ट किया गया है।
उल्लेखनीय है कि उक्त दिनों पर ज्वार की ऊँचाई औसत से 20 प्रतिशत अधिक होती है।
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पं० अमित कुमार शुक्ल "गर्ग"
Amit Kumar Shukla
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C.S./G.A.S./Geography P.N.06/19,B.N.B+4 प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
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