अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के विषय मे परीक्षोपयोगी तथ्य।
अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस
अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस या जैव विविधता संरक्षण दिवस 22 मई को मनाया जाने वाला पर्व है।
इसका प्रारंभ संयुक्त राष्ट्र संघ ने किया था।
जैव विविधता के लिए वर्ष 2022 का थीम:- "सभी जीवन के लिए एक साझा भविष्य का निर्माण।" (Building a shared future for all life)
नैरोबी में 29 दिसंबर 1992 को हुए जैव-विविधता सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया था, किंतु कई देशों द्वारा व्यावहारिक कठिनाइयां जाहिर करने के कारण इस दिन को 29 मई की बजाय 22 मई को मनाने का निर्णय लिया गया।
इसमें विशेष तौर पर वनों की सुरक्षा, संस्कृति, जीवन के कला शिल्प, संगीत, वस्त्र-भोजन, औषधीय पौधों का महत्व आदि को प्रदर्शित करके जैव-विविधता के महत्व एवं उसके न होने पर होने वाले खतरों के बारे में जागरूक करना है।
जैव विविधता के संरक्षण हेतु कुछ भारतीय पहल
(1) वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम (1972)
(2) जैविक विविधता अधिनियम (2002)
(3) आर्द्रभूमि (संरक्षण एवं प्रबंधन) नियम (2017)
हमारे जीवन में जैव-विविधता का काफी महत्व है। हमें एक ऐसे पर्यावरण का निर्माण करना है, जो जैव- विविधता में समृद्ध, टिकाऊ और आर्थिक गतिविधियों के लिए हमें अवसर प्रदान कर सकें।
जैव-विविधता के कमी होने से प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, सूखा और तूफान आदि आने का खतरा और अधिक बढ़ जाता है अत: हमारे लिए जैव-विविधता का संरक्षण बहुत जरूरी है।
लाखों विशिष्ट जैविक की कई प्रजातियों के रूप में पृथ्वी पर जीवन उपस्थित है और हमारा जीवन प्रकृति का अनुपम उपहार है। अत: पेड़-पौधे, अनेक प्रकार के जीव-जंतु, मिट्टी, हवा, पानी, महासागर-पठार, समुद्र-नदियां इन सभी प्रकृति की देन का हमें संरक्षण करना चाहिए, क्योंकि यही हमारे अस्तित्व एवं विकास के लिए काम आती है।
प्राकृतिक एवं पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में जैव-विविधता का महत्व देखते हुए ही जैव-विविधता दिवस को अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया।
पृथ्वी पर लाखों प्रजाति के जीव व वनस्पति उपलब्ध हैं। इन सबकी विशेषता व आवास भिन्न (विविध) हैं, फिर भी यह आपस मे प्राकृतिक कड़ियों से जुड़े हैं। संक्षेप में हम इसे वैश्विक जैव विविधता मान सकते हैं।
मानव के कारण पर्यावरण में हो रहे बदलाव के कारण इनकी कड़ियाँ टूट रही हैं, जो कि चिन्ता का विषय है।
22 मई दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में मनाया जाता है।चार्ल्स डारविन के सिध्दांत की 150 वीं वर्षगांठ पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2010 को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष भी घोषित किया था ।
भारत की जैव विविधता
विश्व के बारह चिन्हित मेगा बायोडाइवर्सिटी केन्द्रों में से भारत एक है।
जैव विविधता अधिनियम, 2002
जैवविविधता अधिनियम, 2002 भारत में जैव विविधता के संरक्षण के लिए संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है। जो परंपरागत जैविक संसाधनों और ज्ञान के उपयोग से होने वाले लाभों के समान वितरण के लिए एक तंत्र प्रदान करता है।
राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) की स्थापना 2003 में जैव विविधता अधिनियम, 2002 को लागू करने के लिए की गई थी। एनबीए एक सांविधिक, स्वायत संस्था है। यह संस्था जैविक संसाधनों के साथ-साथ उनके सतत उपयोग से होने वाले लाभ की निष्पक्षता और समान बटवारे जैसे मुद्दों पर भारत सरकार के लिए सलाहकार और विनियामक की भूमिका निभाती है।
रेबीज और गिद्ध
पक्षियों की दृष्टि से भारत का स्थान दुनिया के दस प्रमुख देशों में आता है। भारतीय उप महाद्वीप में पक्षियों की 176 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
दुनिया भर में पाए जाने वाले 1235 प्रजातियों के पक्षी भारत में हैं, जो विश्व के पक्षियों का 14 प्रतिशत है।
गंदगी साफ करने में कौआ और गिद्ध प्रमुख हैं। गिद्ध शहरों ही नहीं, जंगलों से खत्म हो गए। 99 प्रतिशत लोग नहीं जानते कि गिद्धों के न रहने से हमने क्या खोया।
1997 में रेबीज से पूरी दुनिया के 50 हजार लोग मर गए। भारत में सबसे ज्यादा 30 हजार मरे। आखिर क्यों मरे रेबीज से, एक प्रश्न उठा। स्टेनफोर्ट विश्व विद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि ऐसा गिद्धों की संख्या में अचानक कमी के कारण हुआ। वहीं दूसरी तरफ चूहों और कुत्तों की संख्या में एकाएक वृद्धि हुई।
अध्ययन में बताया गया कि पक्षियों के खत्म होने से मृत पशुओं की सफाई, बीजों का परागण भी काफी हद तक प्रभावित हुआ। अमेरिका जैसा देश अपने यहाँ के चमगादड़ों को संरक्षित करने में जुटा पड़ा है। अब हम सोचते हैं कि चमगादड़ तो पूरी तरह बेकार हैं। मगर वैज्ञानिक जागरूक करा रहे हैं। चमगादड़ मच्छरों के लार्वा खाता है। यह रात्रिचर परागण करने वाला प्रमुख पक्षी है। उल्लू से क्या फायदा, मगर किसान जानते हैं कि वह खेती का मित्र है, जिसका मुख्य भोजन चूहा है।
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पं० अमित कुमार शुक्ल "गर्ग"
Amit Kumar Shukla
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