इसे पढ़ने के बाद परीक्षाओं में आर्थिक विकास से आये प्रश्न कभी ग़लत नही होंगे।
आर्थिक विकास {Economic Development}
प्रायः आर्थिक विकास , आर्थिक प्रगति, आर्थिक वृद्धि, व आर्थिक कल्याण का पर्यायवाची शब्दों के रूप में व्यवहार होता है।
यह अनिवार्य रूप से परिवर्तन की प्रक्रिया है।
यह मानवीय आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की पूर्ति का एकमात्र साधन है।
अल्पविकसित देशों में विद्यमान गरीबी, बेरोजगारी,
आर्थिक विषमता तथा बाजार सम्बन्धी अपूर्णतायें समाप्त करने का एकमात्र उपाय आर्थिक विकास ही है।
मायर, बाल्डविन, साइमन कुजनेत्स, तथा यंग्सन ने आर्थिक विकास का अर्थ "वास्तविक आय में दीर्घकालिन वृद्धि" माना है।
आर्थिक विकास से सम्बंधित कुछ विद्वानों की परिभाषायें निम्नलिखित है।
"आर्थिक विकास का अर्थ प्रतिव्यक्ति उत्पादन में वृद्धि से लगाया जाता है।"
-- आर्थर लुइस
"आर्थिक प्रगति से आशय किसी समाज से सम्बंधित आर्थिक उद्देश्यो को प्राप्त करने की शक्ति में वृद्धि करना है।"
-- यंगसन
"आर्थिक विकास से अभिप्राय , एक देश के समाज मे होने वाले उस परिवर्तन से लगाया जाता है जो अल्प विकसित स्तर से उच्च आर्थिक उपलब्धियों की ओर अग्रसर होता है"
-- प्रो० डी० ब्राइट सिंह
कुछ विद्वानों ने आर्थिक विकास का अर्थ आर्थिक कल्याण में वृद्धि बताया है।
यह तभी सम्भव है जबकि प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि के साथ साथ आय एवं सन्तुष्टि की असमानतायें घटती जाय।
विभिन्न परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि आर्थिक विकास अनिवार्य रूप से परिवर्तन की प्रक्रिया है।
विकास की प्रक्रिया के अंर्तगत आर्थिक तत्वों में परिवर्तन द्वारा ही वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।
आर्थिक विकास के निर्धारक
(Determinants of Economic Development)
किसी देश का आर्थिक विकास जिन घटकों पर निर्भर करता है वे आर्थिक व अनार्थिक दोनों प्रकार के होते हैं।
आर्थिक घटकों में प्राकृतिक व मानवीय संसाधन , पूंजी उद्यमशीलता, उत्पादन तकनीक आदि तथा अनार्थिक घटकों में सामाजिक संस्थाओं, सामाजिक मान्यताओं, नैतिक मूल्यों तथा राजनीतिक दशाओं को सम्मिलित किया जाता है।
आर्थिक घटक अनार्थिक घटक के साथ मिलकर आर्थिक विकास का निर्धारण करते हैं।
आर्थिक विकास के प्रमुख निर्धारक निम्नलिखित हैं।
(1) प्राकृतिक संसाधन
प्राकृतिक संसाधन प्रकृति द्वारा मानव को निःशुल्क प्रदान किये जाते है।
इन्हें मानव उत्पन्न नही कर सकता।
मिट्टी, जल, धरातल, जलवायु, वनस्पति, खनिज पदार्थ, तेल, कोयला, प्राकृतिक गैस, लोहा, तांबा, आदि प्राकृतिक संसाधन है।
इन संसाधनों की उपलब्ध मात्रा एवं किस्म आर्थिक विकास को गति एवं दिशा निर्धारित करता है।
प्राकृतिक संसाधन निष्क्रिय होते हैं, इन्हें मानवीय प्रयासों द्वारा गतिशील बनाया जा सकता है।
प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता आर्थिक विकास के लिये अच्छी सम्भावनाएं व्यक्त करती हैं।
परन्तु इसका तात्पर्य यह नही है कि प्राकृतिक संसाधनों के अभाव में प्रगति असम्भव है।
वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टि से उन्नत राष्ट्र प्राकृतिक संसाधनों की अल्पता की दशा में भी आर्थिक विकास की दौड़ में आगे निकल जाते हैं।
उदहारण के तौर पर अगर देखा जाय तो जापान के पास प्राकृतिक संसाधनों की अपेक्षाकृत कमी होने के बावजूद भी आर्थिक विकास की दौड़ में आगे है।
ऐसे देशों के पास नए संसाधनों की खोज तथा वर्तमान संसाधनों के कुशल उपयोग की कला होती है।
(2) जनसंख्या
जनसंख्या के आकार जनांकिकी संरचना एवं उसके गुणों को आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण घटक माना जाता है।
क्योकि निष्क्रिय प्राकृतिक संसाधनों से उत्पादन प्राप्त करके उपयोगिता हासिल करना मानव का काम है।
जनसंख्या वृद्धि का आर्थिक विकास पर अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
विकसित देशों में जहाँ जनसंख्या वृद्धि की दर धीमी है वहाँ आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
जनसंख्या वृद्धि से वस्तुओं की मांग बढ़ती है और बाजार का विस्तार होता है।
उत्पादित माल आसानी से बिक जाता है।
माल की बिक्री बढ़ने से लाभ की मात्रा तथा बचत की सम्भावना बढ़ती है।
जिससे पूंजी निर्माण तथा उद्योगों का विस्तार होने लगता है।
अल्पविकसित देशों में तेजी से बढ़ती जनसंख्या आर्थिक विकास में अनेको रुकावटे उत्पन्न करती है।
जनसंख्या की तीव्र वृद्धि से बाजार में वस्तुओं की मांग तेजी से बढ़ती है किंतु पूर्ति उसी अनुपात में नही बढ़ पाती।
परिणामस्वरूप कीमतें बढ़ने लगती है।
बढ़े हुए उत्पादन का अधिकांश भाग उपभोग कर लिया जाता है।
तेजी से बढ़ती श्रम शक्ति के लिये रोजगार सृजन नही हो पाता परिणामस्वरूप बेरोजगारी जन्म लेती है।
(3) पूँजी निर्माण
पूँजी निर्माण पूंजी की मांग और पूर्ति का फल है।
पूँजी निर्माण का अर्थ पूँजीगत परिसम्पत्तियों - औजार, उपकरण, संयंत्र, मशीनरी, परिवहन आदि के सृजन से है।
पूंजी निर्माण या पूँजी संचय को आर्थिक विकास का प्रमुख निर्धारक माना जाता है।
पूँजी की कमी त्वरित विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा होती है।
अल्पविकसित देशों में पूँजी निर्माण की सम्भावनायें कम मिलती हैं।
इसलिए उन्हें विकास की प्रारंभिक अवस्था मे विदेशी पूँजी पर निर्भर रहना पड़ता है जबकि विकसित देशों में ऐसा नही होता।
(4) प्राविधिक प्रगति
प्राविधिक प्रगति उत्पादन की विधियों में परिवर्तन से सम्बंधित होती है।
शुम्पीटर ने तकनीकी प्रगति एवं नव प्रवर्तन को आर्थिक विकास का एकमात्र निर्धारक स्वीकार किया है।
मैसन के अनुसार तकनीकी प्रगति कच्चे माल के क्षेत्र में अनेक लाभों को जन्म देती हुई विकास प्रक्रिया को गति देती है।
यह अज्ञात संसाधनों की खोज खनिज पदार्थ की मितव्ययिता पूर्ण निकासी तथा कच्चे मालों के परिष्करण में कम व्यय को सम्भव बनाती है।
(5) उद्यमशीलता
आर्थिक विकास में उद्यमशीलता की विशेष भूमिका होती है।
शुम्पीटर ने उद्यमशीलता को विकास प्रक्रिया में केंद्रीय स्थान दिया है।
नव प्रवर्तन उद्यमी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है।
यह विशिष्ट योग्यताओं के बल पर नई वस्तु का उत्पादन आरम्भ करता है या नई तकनीक लागू करता है।
अथवा नए बाजार की खोज करता है।
अविष्कार या तकनीकी ज्ञान तभी उपयोगी हो सकता है जबकि उसे नव प्रवर्तक के रूप में प्रयुक्त किया जाय और उसकी पहल उद्यमियों द्वारा की जाय।
(6) आर्थिक संगठन
आर्थिक विकास की समस्या मुख्य रूप से वित्तीय समस्या न होकर आर्थिक संगठन की समस्या है।
ग्रामीण बचतों को गतिशील बनाने तथा कृषि उद्योग एवं निर्यातकों की साख आवश्यकतायें पूरी करने के लिए जिन विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं की आवश्यकता होती है।
अल्पविकसित देशों में या तो उनका अस्तित्व ही नही होता अथवा वे पर्याप्त विकसित नही होती।
(7) व्यवसायिक ढांचा
श्रम शक्ति का पेशेवर वितरण ही व्यवसायिक ढांचा कहलाता है।
कोलिन क्लार्क का मत है कि प्रतिव्यक्ति आय का ऊंचा स्तर द्वितीयक एवं तृतीयक व्यवसायों में श्रम शक्ति के बड़े अनुपात की संलग्नता से जुड़ा होता है।
आर्थिक प्रगति के साथ साथ श्रम शक्ति प्राथमिक आर्थिक कार्यो से द्वितीयक एवं तृतीयक व्यवसायों की ओर खिसकती जाती है।
यह खिसकाव की गति जितनी अधिक तेज होती है प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय उत्पादन उतनी ही तेजी से बढ़ता है।
अल्पविकसित देशों के सामने मुख्य समस्या व्यवसायिक ढांचे को संतुलित बनाने की होती है।
(8) कौशल निर्माण
कौशल निर्माण जनशक्ति में निवेश तथा सृजनकारी साधन के रूप में उसके विकास से सम्बंधित है।
कौशल निर्माण का उद्देश्य श्रम शक्ति में आवश्यक निपूणताओं का सृजन तथा उसे लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराना होता है।
अल्पविकसित देशों में विकास की धीमी गति कौशल निर्माण को गति नही दे पाई है।
(9) सामाजिक घटक
आर्थिक विकास को निर्धारित करने में यह घटक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भौतिक उन्नति के लिए सामाजिक वातावरण की अनुकूलता आवश्यक है।
किसी देश के निवासी यदि आर्थिक विकास की इच्छा और साहसी भावना रखते हैं तो वे उत्पादन के नए तरीकों को अपनाने में तत्परता दिखाते हैं।
(10) धार्मिक घटक
आर्थिक विकास पर लोगो की धार्मिक भावनाओं तथा जीवन दर्शन का भी प्रभाव पड़ता है।
उनका कार्य के प्रति दृष्टिकोण धनार्जन की इच्छा एवं संग्रह इस बात पर निर्भर करता है कि उनका जीवन दर्शन भौतिकवादी है अथवा आध्यात्मिक है।
आर्थिक विकास हेतु भौतिकवादी दर्शन हितकारी माना जाता है।
(11) राजनीतिक घटक
आर्थिक क्रियाओं को प्रोत्साहित व हतोत्साहित करने में राजनीतिक परिवेश महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
योग्य सरकार के बिना विश्व का कोई भी देश आर्थिक विकास नही कर सकता।
आर्थिक विकास के लिये राजनीतिक स्थिरता का होना बहुत ही आवश्यक माना जाता है।
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अमित कुमार शुक्ल
Blogger/C.S./G.A.S./Geography
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
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