इसे पढ़ने के बाद वाताग्र और वाताग्रजनन से सम्बंधित कन्फ्यूजन क्लियर हो जाएगा।
वाताग्र व वाताग्रजनन (fronts and frontogenesis)
जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट हो जाता है हवा के आगे का भाग को ही वाताग्र कहा जाता है।
आसान भाषा मे अगर कहें तो जब गर्म तथा ठंडी हवा आपस मे एक दूसरे के नजदीक जाती है तो दोनों के बीच मे एक ऐसी रेखा पाई जाती है जो दोनों को अलग करती है यही वाताग्र है।
सामान्य रुप से यह एक ढलुआ सीमा होती है जिसके सहारे दो विपरीत स्वभाव वाली हवाएं मिलती हैं।
वाताग्र की उत्पत्ति से सम्बंधित प्रक्रिया को वाताग्रजनन या फ्रंटोजेनेसिस कहते हैं।
तथा उसके नष्ट होने की प्रक्रिया को वाताग्र क्षय कहते हैं।
वाताग्र का ढाल उच्च अक्षांशों की ओर तीव्र होता है।
तथा निम्न अक्षांशों की ओर मन्द होता है।
वाताग्र शब्द का सर्व प्रथम प्रयोग टार वर्गरान ने किया था।
वाताग्र संकल्पना पर टार वर्गरान , सोलवर्ग, पीटरसन, बर्कनिज ने कार्य किया।
नार्वे के दो जलवायु विज्ञानियों विल्हेम बर्कनिज व जेकब बर्कनिज ने ध्रुवीय वाताग्र सिद्धान्त का प्रतिपादन 1918 में किया।
जिसे लहर सिद्धान्त या बर्जेन सिद्धान्त भी कहा जाता है।
स्वीडन के प्रसिद्ध विद्वान बर्जेन के नाम पर इस सिद्धांत को बर्जेन सिद्धांत भी कहा जाता है।
वाताग्रो का वर्गीकरण :-
विभिन्न मतभेदों को ध्यान में रखते हुए पीटरसन महोदय ने वाताग्रो को चार प्रकार का बताया है।
जिसे उष्मागतिकी वर्गीकरण भी कहा जाता है जो निम्नलिखित है:-
1 उष्ण वाताग्र
2 शीत वाताग्र
3 स्थिर या स्थायी वाताग्र
4 अधिविष्ट या सँरोधी वाताग्र
इसके उत्पत्ति के लिये आवश्यक दशायें :-
1 दो विपरीत हवाएं
2 वायुराशियो की विपरीत दिशाएं
वाताग्र प्रदेश :-
1 ध्रुवीय वाताग्र प्रदेश
2 आर्कटिक वाताग्र प्रदेश
3 अंतरा अयनवर्ती वाताग्र प्रदेश।
वाताग्र तथा मौसम :-
वाताग्र का निर्माण दो विपरीत वायुराशियो के सम्पर्क से होता है जिनका मौसम हवाओं द्वारा बनता है।
एक प्रकार से यह कहा जा सकता है कि पवनो के सम्मिलित रूप को वाताग्र का मौसम कहा जाता है।
इस प्रकार वाताग्र से मौसम और उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है।
मौसम वाताग्र के निर्माण के साथ परिवर्तनशील होता है।
(A) शीत वाताग्र का मौसम:-
शीत वाताग्र में ठंडी वायु अतिआवश्यक रूप में पाई जाती है।
इसमे ठंडी वायु गर्म वायु को ऊपर की ओर ढकेल देती है जिसमे वाताग्र का ढाल अधिक होता है।
(B) उष्ण वाताग्र का मौसम:-
इस वाताग्र में गर्म हवा अतिआवश्यक रूप में पाई जाती है।
और गर्म तथा हल्की होने के कारण ठंडी वायु के ऊपर चली जाती है।
यह गर्म वायु स्वभाविक तौर पर नीचे की ओर ठंडी होती जाएगी और संघनन की क्रिया से वर्षा होगी।
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अमित कुमार शुक्ल
Blogger/C.S./G.A.S./Geography
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
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