परीक्षाओं में भारतीय वनस्पतियों से आये प्रश्न अब गलत नही होंगे।





भारतीय वनस्पति 

वन संपदा की दृष्टि से भारत काफी सम्पन्न देश है।

सम्पूर्ण भारत के 70% सर्वेक्षण करने के बाद भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण संस्थान ने पेड़ पौधों की 46000 से अधिक प्रजातियों का पता लगाया है।

जानिए भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के बारे में

स्थापना :-  13 फ़रवरी 1890

मुख्यालय :-  कोलकाता

संस्थापक :- सर जार्ज किंग

उद्देश्य :- देश के पौध संसाधनों का अन्वेषण और आर्थिक महत्व की पौध प्रजातियों की पहचान करना।



भारतीय वनस्पति के वर्गीकरण

(1) उष्ण कटिबंधीय सदाबहार/अर्द्व सदाबहार वन

(2) उष्ण कटिबंधीय पतझड़ वन

(3) शुष्क मरुस्थलीय कांटेदार वन

(4) वेलांचली/अनूप/डेल्टाई वन

(5) पर्वतीय वन






(1) उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन

ये वन भारत के उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ पर तापमान 24℃ से अधिक व वर्षा 200 cm से अधिक हो।

उपर्युक्त दशा में उगने वाले वृक्ष वर्ष भर हरे भरे रहते हैं।

इस लिए इसे सदाबहार वन कहते हैं।

यहाँ वृक्षो की ऊंचाई 45 से 60 मीटर होती है।

इन वनों में मुख्य रूप से ताड़, महोगनी, नारियल, एबोनी आबूनस, बांस , बेंत, रोजवुड आदि वृक्ष उगते हैं।

भारत मे ऐसे वन असम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, अंडमान निकोबार, पश्चिम घाट का पश्चिम ढाल तराई हिमालय और कर्नाटक में पाए जाते हैं।

इन वृक्षों की प्रजातियों में साइडर होलक व कैल है।




(2) उष्ण कटिबंधीय पतझड़ वन

भारत मे इस प्रकार के वन अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।

ये वन भारत के उन स्थानों पर पाए जाते हैं जहाँ वर्षा 100 से 200 cm तक होती है।

ये वन गर्मी के प्रारम्भ में अपनी पत्तियां गिरा देते हैं।

इसी लिए इन्हें पतझड़ या मानसूनी वन कहते हैं।

इस वन में वृक्ष अधिक लंबे या सघन नही होते है।

इन वनों में साल, सागौन, शीशम, चंदन, आम, आँवला, महुआ आदि के वृक्ष मिलते हैं।

इस प्रकार के वनों का विस्तार गिरिपदीय हिमालय, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम घाट का पूर्वी ढाल, उडीसा पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड आदि जगहों पर है।

इस वन की वृक्ष की लकड़ियां मुलायम मजबूत व टिकाऊ होती है।





(3) शुष्क मरुस्थलीय कांटेदार वन

इस प्रकार के वन भारत के उन स्थानों पर पाए जाते हैं जहाँ वर्षा 50 cm से कम होती है।

इस वन के वृक्ष कांटेदार होते है।

इन वनों के वृक्ष छोटे - छोटे व कंटीली झाड़ियों के रूप में होते हैं।

इन वनों के वृक्षों के छाल मोटी होती है क्योंकि इससे गर्मी में वृक्षों की रक्षा होती है।

तथा इनकी पत्तियां गुद्देदार व कांटेदार होती हैं।

इन वनों के वृक्षो में बबूल, खजूर, नागफ़नी, रीठा, केर, बेर, आँवला, रोहीड़ा , करील आदि वृक्ष पाए जाते हैं।

ऐसे वृक्ष भारत के राजस्थान, गुजरात, द०प०उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, भीतरी कर्नाटक में पाए जाते हैं।





(4) वेलांचली या अनूप या डेल्टाई वन

ऐसे वन नदियों के डेल्टा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

इस लिए डेल्टाई वन भी कहते हैं।

डेल्टाई भूमि समतल तथा नीची होती है जिस कारण समुद्र का खारा जल वहाँ प्रवेश कर जाता है।

जिस कारण यहाँ सदाबहार ज्वारीय वन पाए जाते हैं।

इन वनों की लकड़ी कठोर तथा छाल छारीय होता है जो समुद्र के खारे जल का परिणाम है।

इन वनों की लकड़ी का उपयोग नाव बनाने में तथा छाल का उपयोग चमड़ा पकाने व रंगने में होता है।

इन वनों में मैंग्रोव, गोरने, ताड़, कैसुरीना, सुंदरी, नारियल, फोनिक्स, निप्पा आदि वृक्ष पाए जाते हैं।

ऐसे वन भारत मे गंगा ब्रह्मपुत्र डेल्टा, महानदी डेल्टा, कृष्णा नदी डेल्टा, कावेरी नदी डेल्टा में पाए जाते हैं।




(5) पर्वतीय वन 

ये वन हिमालय पर्वत पर उगते है।

ये असम से कश्मीर तक है।

ये वन ऊंचाई के साथ बदलते रहते हैं।

पश्चिम हिमालय पर 900 मीटर की ऊंचाई पर सदाबहार व पतझड़ वन

900 से 1800 मीटर की ऊँचाई तक शीतोष्ण कटिबंधीय चौड़ी पत्ती वाले वन

1800 से 3000 मीटर की ऊंचाई तक समशीतोष्ण कोणधारी वन मिलते हैं।

इनमें ओक, देवदार, बर्च, मैपिल, चीड़, ब्लू, पाइन आदि वृक्ष पाए जाते हैं।

पूर्वी हिमालय पर 4800 से 5000 मीटर तक टुंड्रा वन मिलते हैं।





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अमित कुमार शुक्ल
Blogger/C.S./G.A.S./Geography
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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