क्या है ऊष्मा द्वीप,अपोढ रेखा,वालेस रेखा,चोस,खोल,भाट,धाया आदि।


भूगोल में महत्वपूर्ण शब्दावलियां

भूगोल में कुछ महत्वपूर्ण शब्दावली जिसे हम नही जानते है और यह अक्सर परीक्षाओं में पूछे जाते है।

यह शब्दावली अधिकांश पुस्तको में नही मिलती है।

आइये एक नजर डालते है कुछ महत्वपूर्ण शब्दावलियों पर:-

1 ऊष्मा द्वीप

नगरों के केंद्रीय व्यवसाय क्षेत्र या चौक क्षेत्र पर मिलने वाले उच्च तापमान के क्षेत्र को ऊष्मा द्वीप कहा जाता है।

इनकी स्थिति वर्ष भर हमेशा बनी रहती है और इनके कारण नगर विशेष तथा उसके चतुर्दिक स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में तापीय विसंगति उत्पन्न हो जाती है।

2 बात फुरान

यह एक अरबी भाषा का शब्द है जो जाड़े के मौसम अथवा उ०पू० मानसून काल मे अरब सागर के खुले समुद्र की दिशा की ओर संकेत करता है जब दबाव का प्रमुख तंत्र एशिया के ऊपर स्थित होता है तब अरब सागर के ऊपर साइबेरियाई प्रतिचक्रवातो की शांत पवन का विस्तार हो जाता है।

3 मृदा जल

मृदा में स्थित जल को मृदा जल या फ़िल्म वाटर की संज्ञा दी जाती है।

4 अपोढ रेखा

किसी जलधारा के किनारे पर उसके द्वारा बहाकर लाये गए पदार्थों के जमाव से बनी वह रेखा जो बाढ़ की उच्चतम अवस्था को व्यक्त करती है अपोढ रेखा कहलाती है।

5 कैसिम्बो

इस शब्द का प्रयोग अंगोला तट पर मिलने वाले धमिल मौसम के लिये किया जाता है।

उल्लेखनीय है कि यहाँ बेंगुला धारा के कारण साधारणतया सुबह और शाम को घना कुहासा एवं निम्न मेघ छाए रहते है।

6 करेवा

जम्मू कश्मीर राज्य में पीर पंजाल श्रेणी के पार्श्व में 1500 से 1850 मीटर की ऊँचाई पर मिलने वाली झीलीय निक्षेपों को करेवा के नाम से जाना जाता है।

इनके नति तल निश्चित रूप से इस ओर संकेत करते है कि हिमालय पर्वत अभिनुतन (प्लायोसिन) युग मे भी अपनी उत्थान की प्रक्रिया में था।

7 चोस

भारतीय पंजाब में शिवालिक पहाड़ियों से जुड़े हुए मैदान ऊपरी भाग में स्थित नदियों के जाल को चोस कहते है।

इन चोस द्वारा काफी अपरदन किया गया है जिसके कारण यहाँ काफी खड्डों का निर्माण हो गया है।

प्रत्येक बाढ़ के बाद चोस द्वारा जमा की गई बालूका राशि व्यवस्थित एवं पुनर्व्यवस्थित होती रहती है तथा नदियों के कगार के अधिक अस्थायी होने के कारण उनका मार्ग भी हमेशा परिवर्तित होता रहता है।

चोस अपरदन के स्पष्ट उदाहरण होशियारपुर में पाई जाती है।

8 बेटे भूमि

नदी घाटीयो के खादर क्षेत्र कही कही बेट भूमि के नाम से जाना जाता है बाढ़ से प्रभावित रहने वाला यह क्षेत्र कृषि के लिये काफी महत्वपूर्ण होता है।

9 भूर

ऊपरी गंगा दोआब में असामान्य भू आकृतिक लक्षण वाले वायु निर्मित निक्षेपों को भूर नाम से जाना जाता है।

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद तथा बिजनौर जिलों में गंगा के पूर्वी तटों पर ये भूर निक्षेप  बलुई मिट्टी के उच्च प्रदेश का निर्माण करते है।

10 धाया

पंजाब क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली पाँच नदियों व्यास ,सतलज,रावी, चिनाब तथा झेलम द्वारा अपने मार्गो से जमा की गई जलोढ़ राशि को तोड़कर पार्श्ववर्ती क्षेत्रो में उच्च भूमियों का निर्माण किया है।

इन्ही उच्च भूमियों को स्थानीय भाषा मे धाया कहा जाता है।

इन धाया की ऊँचाई लगभग 3 मीटर या इससे भी अधिक है तथा इनके बीच मे काफी खड्डों का निर्माण हो गया है।

11 खोल

गंगा यमुना नदियों के दोआब क्षेत्र में पुरानी भाँगर जलोढ़ मिट्टी से चौरस उच्च भूमियों का निर्माण हुआ है जो नवीन जलोढ़ से निर्मित खादर भूमियों से भिन्न है।

बांगर जलोढ़ से निर्मित इन उच्च भूमियों के मध्यवर्ती ढालों को जो अपने उच्चावच में 15 से 30 मीटर सापेक्षिक भिन्नता के कारण दूर से ही स्पष्ट होते है स्थानीय भाषा मे खोल कहा जाता है।

12 वालेस रेखा

दक्षिणी पूर्वी एशिया एवं ऑस्ट्रेलिया के बीच स्थित रेखा जो एशियाई एवं ऑस्ट्रेलियाई प्राणी जगत तथा पादप जगत के बीच पाई जाने वाली विभिन्नता का स्पष्ट विभाजन करती है यह रेखा बोर्नियो द्वीप को एक ओर सेलिबिज से तथा दूसरी ओर लम्बोक को अलग करती है इनके दोनों ओर मिलने वाले प्राणी जगत इतने भिन्न है कि वे दो स्पष्ट प्रदेशो का निर्माण करते है।


13 भाट

पूर्वी सरयूपार क्षेत्र तथा बिहार के मध्य पश्चिमी भाग में मिलने वाली चुना प्रधान जलोढ़ मिट्टी को भाट के नाम से जाना जाता है।

इस मिट्टी में चुना पदार्थों के साथ ही जैव पदार्थों एवं नाइट्रोजन की भी अधिकता पाई जाती है इसमे गन्ने की कृषि अधिक सफलतापूर्वक की जाती है।


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अमित कुमार शुक्ल
Blogger/C.S./G.A.S./Geography
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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